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पिता से विरोध करने का उसमें साहस नहीं था ।
शइकीयानी के यहाँ से लौटते ही अनुपमा अपने कपड़े बदलने लगी । गोसाइन वहीं थीं । अनुपमा को इस तरह कपड़े बदले देख उन्होंने पूछा :
"कहीं जाना है क्या भाभी ?"
“हाँ।”
“कहाँ ?”
" शइकीयानी के साथ जेल तक । शइकीया से भी मिल आऊँगी। विवाह का सारा भार तो उन्हीं पर था न ! उनकी गिरफ़्तारी की ख़बर पा पुरणि गोदाम के लोग ख़ ुद ही दो बार दूध पहुँचा गये हैं। वरना बड़ी मुसीबत होती : उनके मुंह से ही सुनने को मिला कि उनके गाँव को पुलिस ने घेर रखा है। रूपनारायण आज शायद ही भाग सके !"
"सब विधाता के भरोसे है भाभी । धीरे-धीरे सभी आदमी टूटते जा रहे हैं । रूपनारायण के पकड़ लिये जाने पर अब बचेगा ही कौन ?” कहती हुई गोसाइन का मुख भारी हो गया ।
अनुपमा थोड़ी देर तक चुप रही। फिर उसने पूछा :
"टिको चला गया क्या ?"
" जाने ही वाला है ।" गोसाइन ने कहा । " जेल में आज पानीखेत वाले मुकदमे में फँसे लोगों की शिनाख्त होने वाली है। ज़रा पता करना कि क्या हुआ ।"
"अच्छा।"
से
अनुपमा ने साधारण वस्त्र ही पहन रखे थे । उसके चले जाने के पश्चात् टिको की ख़बर लेने के लिए गोसाइन बाहर निकलीं । लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दिया । शायद वह निकल गया था, पर उसके जाने का पता भी उन्हें नहीं चला ! वे लौट आयीं । घर में भीतर जाकर शालिग्राम शिला के पास घुटने टेककर उन्होंने टिको की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की । इन्हीं शालिग्राम की पूजा उनके भाई भी करते थे । माय से जब कभी उनके पति यहाँ आकर टिकते तो वे भी उन्हीं की पूजा करते थे । पति के लापता होने के दिन अनुपमा भी उन्हीं के आगे प्रार्थना करती रही है । वह क्या प्रार्थना करती है, वही जाने । कहीं वह उल्टी प्रार्थना तो नहीं करती ! एक ही भगवान् की शत्रु और मित्र दोनों द्वारा प्रार्थना किये जाने पर वे किसकी प्रार्थना का क्या प्रतिदान देते हैं, कुछ कहा नहीं जा सकता ! वे किसी की ओर से बोल भी तो नहीं सकते । सबको सन्तुष्ट करना शायद उनके लिए कठिन होता होगा। कहा जाता है कि वे बड़े जाग्रत् देवता हैं । सात पीढ़ियों के इष्ट देवता रहे हैं वे ऐसा भी सुना गया है कि एक बार कभी स्वप्न में आकर उन्होंने बताया था कि वह अब आगे की अधिक से अधिक चार
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मृत्युंजय / 255