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टिको ने गोसाइन के चेहरे की ओर देखा । वह सोच नहीं सका कि ये मायङ वाली ही गोसाइन हैं या अनुपमा की ननद । वह डर गया । बोला :
"मैं अभी चला जाऊँगा । अब और फिर किसीको कष्ट नहीं दूंगा । यह औरत कौन है ?"
"डिमि ।"
"अच्छा, तो परेड हो गयी क्या ?"
"हाँ, ठीक से ही हो गयी ।"
" आपने अच्छा समाचार सुनाया। अच्छा अब मैं जाता हूँ लेकिन जाने के पहले एक बात पूछना चाहता हूँ ?"
"क्या !"
"वो कैसे मारे गये थे, आप अच्छी तरह जानती हैं न ?”
"मुझे जानने की कोई ज़रूरत ही नहीं । तुम लोग स्वयं मरने के लिए उत्पन्न हुए थे । मारने के लिए भी तुम लोगों का अवतार होगा, ऐसा तो हमने सोचा भी नहीं था । युद्ध में मार-काट तो होती ही रहती है । इसके लिए मुझे तनिक भी खेद नहीं है । खेद होने पर भी अब कहने के लिए कौन बचा है ? महात्माजी ने ठीक ही कहा था- 'खुद मर जाओ, पर किसी को मारो नहीं ।' पर तुम लोग हो कि मारने पर भी उतारू हो गये । मुझे खेद इसी का है । उन्होंने भी बड़े दुःख के साथ ही बन्दूक उठायी थी । " कहते-कहते वे एक क्षण के लिए aat और आँचल से आँसुओं को पोंछने लगीं ।
feet गोसाइनजी की ओर अपलक दृष्टि से ताकता रहा। इस घर के मालिक काख़ ून होते देख जिस प्रकार का दुःख इसे तब हुआ था, अब भी इसे ठीक वैसी अनुभूति हो रही थी । उसे लगा - गांधीजी की इच्छा के विपरीत यह तोड़फोड़ और खून-खराबा करने का मार्ग सचमुच ग़लत है । चूहे को मारकर हाथ गन्दा करने से कोई लाभ नहीं। ख़ास दुश्मन तो ज्यों के त्यों बचे हैं : बन्दूक़, पिस्तौल लेकर उन लोगों का मुक़ाबला करने की शक्ति उसमें है नहीं । उन लोगों की जो क्षति हुई है, वह भी कुछ मायने नहीं रखती। दरअसल उन लोगों को चिन्ता हुई है जनता का भरोसा खो देने से । और इधर भी जनता का समर्थन लिए बिना ही लोगों ने ब्रिटिश सरकार को मुसीबत में डालने का बीड़ा उठा लिया । जो भी हो, इतना तो मानना ही होगा कि दुःख, कष्ट, अत्याचारों को झेलकर हमारे कार्यकर्ताओं ने जनता के मन में अब स्वराज्य की भावना पनपा दी है। मानो डॉक्टर ने इंजेक्शन लगा दिया है । बन्दूक़, पिस्तौल की अपेक्षा वही पद्धति अधिक कारगर हुई है । लेकिन सभी महात्मा गांधी तो हो नहीं सकते। उसने कहा :
"माँ जी, आप शोक मत कीजिए । शोक करने से कोई लाभ नहीं हैं । जो हो 258 / मृत्युंजय