Book Title: Mrutyunjaya
Author(s): Birendrakumar Bhattacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 261
________________ उन्हें ही लगाया गया है ।" डिमि ने बताया । "अच्छा, तो यह बात थी ।" "अब मैं तो उन्हें जानती नहीं । इसीलिए सीधे आपके पास दौड़ी आयी । वह घर पर हैं नहीं, तो यहाँ रुककर भी क्या करूँ ? मैं चलती हूँ । मेरा मरद भी छूटकर आनेवाला है।" "वह भी जेल में ही है क्या ?" “हाँ।” गोसाइन का स्नेह उमड़ आया । उसे रोकते हुए वह बोली : "चाय पीकर जाना । तुझे भूख नहीं लगी है क्या ?" " अच्छा पिला दीजिये। हाँ, आपका बच्चा ठीक है न ?" "तुम्हें उसकी याद है ? उस कमरे में सोया है । जाकर देख ले । " गोसाइन रसोईघर में चली गयीं। डिमि उठी और सीधे पास वाले कमरे का दरवाज़ा खोलकर अन्दर गयी । मुन्ना सो रहा था। उस चाँद को पालने में सोया देखकर उसका मन प्रसन्न हो गया । वह जगा होता तो वह उसके साथ थोड़ा जी बहला लेती । फिर भी, इतने से ही उसका हृदय जुड़ा गया । किवाड़ को हौले से बन्द कर वह बाहर निकल आयी - बाहर आँगन की तरफ़ । वहाँ कोने में ही एक कुआं था । बाल्टी से पानी खींचकर डिमि अपने हाथ-पाँव धोने लगी । घर के पिछवाड़े एक बग़ीचा भी था और बाँसों का झुरमुट भी । उसके पास ही शइकीया वकील का घर था, जहाँ विवाह का आयोजन हो रहा था । डिमि जल्द ही लौट जाना चाहती थी। इतने में एक आदमी बग़ीचे से होता हुआ आँगन में खड़ा हो गया। उसके हाथ में फरसा था । उसने डिमि को देखा तक नहीं और सीधे रसोईघर के दरवाज़े तक पहुँच गया। उसने वहीं से आवाज़ दो : " गोसाइनजी, ज़रा बाहर तो आइये ।" गोसाइन टिको की आवाज़ सुनकर झटपट बाहर निकल आयो । आते ही उन्होंने पूछा : "क्या हुआ ? तुम निकल नहीं पाये अब तक ?" "निकलता कैसे ? सभी ने बाधा डाली है । " " सभी से मतलब ?" "भुइयानी ने ।” " पर इधर ठहरना ठीक नहीं होगा। भाभी अब लौटने ही वाली है । पता नहीं वह क्या सोचेगी ? तुम लोग हातीचोङ के आदमी हो न ? कौन जाने, कहीं तुम भी उस पाप में शामिल थे क्या ?" मृत्युंजय / 257

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