Book Title: Mrutyunjaya
Author(s): Birendrakumar Bhattacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 258
________________ रही हूँ। तुम्हारी ही बाट जोह रही थी।" "कब तक रुकेगा ?" अनुपमा ने ननद की ओर बिना देखे ही पूछा। "पता नहीं।" "ज़रा बुलाओ तो उसे ।" गोसाइन टिको को बुला लायीं। टिको ने अनुपमा की ओर देखकर सिर झुका लिया। उसके पति का ख न किये जाने का दृश्य उसकी आँखों के समक्ष नाच उठा । अनुपमा ने उससे पूछा : "आप कब तक टिकेंगे?" "बस, दोपहर तक, फिर चला जाऊँगा।" "जा सकेंगे न, कोई परेशानी तो नहीं होगी ?" "नहीं, कुछ नहीं होगा।" "तो फिर रुक जाइये।" अनुपमा मुंह धोने के लिए बाहर निकल आयो । टिको ने कहा : "मैं जानता था, यह बात को समझनेवाली महिला हैं । "आपने सुना है न, हमारा बच्चा नहीं रहा। हाँ, बच्चे की माँ बच गयी है।" गोसाइन कुछ बोलीं नहीं । सहानुभूति प्रकट करने की सामर्थ्य भी अब उनमें नहीं रह गयी थी। उन्होंने केवल इतना ही पूछा : "उसकी तबीयत तो ठीक है ?" "बुरी नहीं है, पर अभी ठीक भी तो नहीं कही जा सकती।" गोसाइन को लगा कि टको की सफेद दाढ़ी पहचान में आ सकती है। चिन्ता के बोझ से उसका मुंह भी लटक गया था। बोली : "स्वराज्य आयेगा कि नहीं ?" टिको ने एक बीड़ी सुलगा ली। और कहा : "आयेगा, ज़रूर आयेगा।" गोसाइन ने टिकौ के चेहरे की ओर देखा। उन्हें लगा मानो इस उत्तर में ही उसका व्यक्तित्व निखर आया है । उन्हें काफ़ी प्रसन्नता हुई। कहने लगी : "अच्छा, आप खाना खाकर तैयार हो जाइये ।" अनुपमा आरती के घर से लौट आयी। पुलिस ने वकील साहब को तब तक रिहा नहीं किया था। यह भी निश्चित नहीं हो पाया कि उन्हें आज रिहाई मिलेगी भी या नहीं । अतः ऐसे सम्बन्धी की खोज की जा रही थी जो कन्यादान की औपचारिकता निबाह सके। शइकीयानी सहमी-सहमी ज़रूर थी, पर उसने असीम धैर्य का परिचय दिया था । आरती के मन में भी अब उतना उद्वेग नहीं दिखा। चूंकि विवाह-वेदिका पर बैठना है, मात्र इसलिए वह प्रस्तुत है। माता 254/ मृत्युंजय

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