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लिए भी पुलिस की जरूरत होगी। यह सोचकर वहाँ से लौटने लगा।
कुछ देर तक शइकीया डिमि को टकटकी लगाकर निहारता रहा । उसके बाद टॉर्च बन्द कर रिवाल्वर ताने हुए ही बड़ी सावधानी से कोठरी से बाहर निकला। इधर डिमि ने सोचा कि भागने का यही मौका है। सामने से भाग नहीं सकती थी। पकड़ लिये जाने की सम्भावना थी। तभी उसने निर्णय कर लिया कि कमरे की दीवार काटकर भागना अच्छा रहेगा। इससे पीछेवाली बँसवाड़ी में घुसने में सुविधा होगी। और कोई उपाय था भी नहीं। ____ शइकीया के बाहर निकलते ही भीतर से डिमि ने दरवाजे पर कुण्डी चढ़ा ली। ताकि शइकीया यदि फिर लौटकर आये भी तो दरवाजा खोलने में उसे कुछ विलम्ब हो जाये । फिर पाँच मिनट के अन्दर ही उसने बाँस की खपच्चियों से निर्मित दीवार चीर डाली और पिछवाड़े से निकल भागी। उसका अनुमान था कि गाँववाले निश्चय ही जंगल में कहीं छिपे होंगे। उनसे मिलकर यह रात तो वह काट ही लेगी। बाद में जो होगा देखा जायेगा।
पिछवाड़े की बँसवाड़ी से होती हुई वह सीधे नदी के किनारे वाले जंगल में घुस गयी। वहाँ से वह नदी-घाट की ओर चल दी। चलती क्या, दौड़ रही थी वह, उसे याद आया कि बलबहादुर शायद घाट पर ही हो।
नदी-घाट पर पहुँचते ही उसने गाँववालों की तलाश करनी चाही, लेकिन अँधेरे में कहीं कुछ भी तो नहीं दिखलाई पड़ता था। फिर भी इस समय उसे अँधेरा ही अच्छा लग रहा था। बलबहादुर के होने का कोई संकेत न पा वह धीरे से पानी में उतर गयी । कपिली को तैरकर पार करने और घाट के उस ओर के खेतों में जा छिपने के अतिरिक्त उसे और कोई उपाय नहीं सूझा । दसएक मिनट में ही बह दूसरे किनारे जा लगी।
उसकी सारी देह भीग गयी थी । चलते समय अब लहँगे से फट-फट आवाज़ निकलने लगी थी । इसलिए उसने लहंगे को कसकर ऊपर की ओर समेट लिया। फिर बालू पर चलती हुई वह ईख के खेत में जा पहुँची। उधर अब भी कई-एक खेतों में ईख काटी नहीं गयी थी। खेत में घुसकर वह एक जगह एक पत्थर पर बैठ गयी। जहाँ से घाट पर होनेवाली बातचीत सुनाई पड़ सकती थी। वहीं चुपचाप बैठ उसने घाट की ओर कान लगा दिये ।
अचानक उसने देखा : आग की लपटें उठ रही हैं । सारा गारोगाँव जल रहा है। घरों से उठनेवाली लाल-लाल जिह्वाएं आसमान में लपलपा रही हैं । किसने लगायी है यह आग ? यह कुकृत्य पुलिस के सिवा और कौन करेगा ? अब वह घर फूंकने पर तुल गयी है। लोगों का सर्वस्व लूटकर, उन्हें अकारण कष्ट पहुँचाकर और स्त्रियों का सतीत्व नष्ट कर भी इन दुराचारियों की मंशा पूरी नहीं
202 / मृत्युंजय