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औरतों के कुछेक कामों में बाधा डालना आसान नहीं होता। इधर शइकीया को कुछ और घरों में भी जाना था। इसीलिए उसे जल्दी पड़ी थी। स्वयं पुलिस अधीक्षक का आदेश था--इस अंचल के सभी युवकों को गिरफ्तार करने का आदेश । इस अंचल में आन्दोलन की बढ़ती हुई गति-विधि को समाप्त करने का एकमात्र यही उपाय था। लेकिन युवकों से इस स्त्री का हौसला तो और भी ग़ज़ब का था । इसे पुलिस का तनिक भी डर-भय नहीं था। ___ शइकीया हैरान था : आन्दोलन को कुचलने के लिए पिछले पांच महीनों से क्या नहीं किया गया ! डण्डे बरसाये; गोली चलायी, लोगों को जेलों में टँसा, जी भरकर अपमानित किया, जुर्माने वसूले। फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला। पता नहीं, इन भोले-भाले किसानों को क्या हो गया है ? किसान ही नहीं, गोसाईंब्राह्मण भी छूटे नहीं हैं। कॉलेज के विद्यार्थी भी लग गये हैं । लोग उन्हें पकड़वाते तो नहीं, उल्टे भगा देते हैं। भला स्वराज्य लेकर आदमी क्या करेगा ? चाटेगा उसे या कानों में लटकायेगा ? अब तो इसके लिए मरने-मारने में भी इन्हें हिचकिचाहट नहीं रही । गाय, बकरी, धान, कबूतर, पाट, गेहूँ---कुछ भी तो ये गांव से बाहर नहीं जाने देते हैं। सब कुछ वसूलने के लिए मिलिटरी की सहायता लेनी पड़ती है।
शइकीया घड़ी देखकर चौंक उठा : पूरे चार बज चुके हैं। अब तक तो सभी व्यक्तियों को निकाल लेना चाहिए। लेकिन यह रतनी, इसका बर्तन धोना अभी तक खत्म ही नहीं हो रहा है। वह बस उन्हें माँजती ही जा रही है । क्या किया जाये ! एक देहाती औरत के हाथों वह आज यों ही ठगा जायेगा क्या ! ___ और न रुकते हुए इस बार शइकीया सीधे कुएँ पर ही पहुंच गया। उसने सारे बर्तनों को ठोकर मारकर कुएं में गिरा दिया। रतनी से क्रोधपूर्वक बोला: “अब चलती है या नहीं।"
रतनी कुछ बोली नहीं। उसने केवल दोनों हाथ ठीक से धो लिये। उसके बाद घर में जाकर उसने देह पर एक चादर डाल ली। फिर बाहर निकलकर शइकीया से 'चल' कहती हुई आगे बढ़ गयी। सड़क पर आ बरठाकुर के घर की तरफ़ देखकर उसने कहा :
"बरठाकुर भैया ! इन लोगों ने मुझे गिरफ्तार कर लिया है। घर में सब कुछ तितर-बितर पड़ा है। जरा एक आदमी को भेज दीजियेगा।" फिर शइकीया की ओर घूमकर बोली :
"चलो, कहाँ चलना है।" बरठाकुर तेजी से बाहर निकल आये, और शइकीया को रोकते हुए कहा : "देखते नहीं, इसके पैर भारी हैं। भला इसे कहाँ लिये जाते हैं ?" शइकीया फक हो गया। अपनी स्थिति साफ़ करते हुए वह बोला :
230/ मृत्युंजय