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"क्या ?" शइकीया ने पूछा। __"मुझे यह पोशाक उतार देनी होगी। बस दाढ़ी-भर बनाने की देर है । औरत का वेश धारण करना होगा । और फिर आप मुझे अपनी गाड़ी से ही छोड़ आइयेगा।" ___ इतना कह रूपनारायण आइने के पास जा दाढ़ी बनाने की तैयारी करने लगा। उसने अनुपमा से कहा, "मेरे लिए तुम एक जोड़ी औरताना कपड़ों की व्यवस्था करो।"
अनुपमा तुरन्त बाहर निकल गयी। श इकीया वहीं खड़े रहे । रूपनारायण दाढी बनाने में जट गया। चार-पांच मिनट में ही उसने दाढ़ी बना ली, एकदम साफ़, चिकनी । फिर सिन्दूर की डिबिया माँगी। आधेक मिनट में ही वह भी मिल गयी । उसने ललाट पर एक बिन्दी लगा ली और केश सँवार लिये । फिर पूछा :
"अनुपमा कहाँ चली गयी? आप ज़रा देखिये तो।"
तभी शइकीया ने बिछावन पर पड़ी रिहा-मेखला की ओर संकेत करते हुए कहा :
"नयी ही तो है । चाहो तो डाल लो।"
शइकीया बाहर निकल गया। रूपनारायण ने जल्दी से अपने कपड़े उतारकर रिहा-मेखला पहन ली। उसके बाद आइने में उसने अपनी सजावट देखी। बुरा नहीं दिखा। लेकिन एक ब्लाउज़ और एक चादर के मिल जाने पर वह पूरी तरह निश्चिन्त हो जाता । उसने अपने पुराने कपड़े बिछावन पर ही डाल दिये । जता खोलकर नंगे पैर हो गया ।
शइकीया फिर कमरे में लौट आये । रूपनारायण की ओर देखकर हँसते हुए कहा :
"अनुपमा अभी आ रही है।"
शइकीया चिन्तित हो गये। थोड़ी ही देर में अनुपमा भी आ गयी। और बोली :
"जरा देर हो गयी। चारों ओर पुलिस तैनात है। चीजें निकालकर लाने में भी सावधानी बरतनी पड़ी। सैण्डल, ब्लाउज़, और चादर होने से चल आयेगा न ? वाह, देखने में तो तुम बड़े बढ़िया लग रहे हो।" उसके होंठों पर मुसकराहट फैल गयी। फिर कहने लगी:
"तुम्हारा एक दूसरा ही नाम रखने को जी कर रहा है।" "क्या नाम ?' "पटेश्वरी?" आतंक की इस घड़ी में यह नाम सुनकर तीनों हँस पडे । रूपनारायण को
250 मृत्युंजय