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"चलो वेटे, भीतर चलो। थोड़ा जलपान भी कर लो। पिठागुडी है।"
"नहीं, मांजी । अभी तो केवल पानी ही चलेगा। और हाँ, टिकौ ने वकीलअकील की बात चलायी थी क्या ?"
"हाँ । वकील तो वह शइकीया ही है। उसी से पूछ सकते हो । टिकौ शायद उधर ही गया है। वह बता रहा था कि तुम लोग सुबह होने के पहले ही लौट जाओगे।"
बुड़िया रसोईघर में चली गयी। उसके पीछे-पीछे कुछ कदम तक रूपनारायण भी गया और वहीं एक कुर्सी पर बैठकर उसने गठरी खोली। उसने अपना सूट निकाला। जल्दी से उसे पहनकर उसने वह गठरी फिर ज्यों-की-त्यों बाँध ली। दाढ़ी पहले जैसी ही बढ़ी रही। इस बीच बुढ़िया एक लोटा पानी ले आयी । रूपनारायण एक साँस में ही उसे गट-गट पी गया और बोला :
"इस गठरी को मैं यहीं छोड़े जा रहा हूँ । कहीं किसी कोने में छिपा देना।"
"नहीं, इसे यहाँ नहीं रखा जा सकता। अगर इसमें कोई ज़रूरी सामान हो तो निकाल लो । मैं इसे जला दूंगी !" रूपनारायण भी अनावश्यक बोझ से मुक्त होना चाहता था । उसने उसमें से एक धूप-चश्मा और एक दियासलाई निकालते हुए कहा :
"ठीक है, इसे जला ही देना। इसमें कुछ है भी नहीं। हाँ, गोसाइन के घर का रास्ता किधर से जाता है ? उनका बच्चा तो ठीक है न?"
"हाँ. ठीक है। वहाँ पिछवाड़े की ओर से ही जा सकोगे। उमके घर से लगा हुआ ही शइकीया का घर है। वहाँ ब्याह का शामियाना तना हुआ दिखाई पड़ेगा।" इतना कह रूपनारायण को घर के पिछवाड़े तक ले जाकर बढ़िया ने एक तने हुए शामियाने की ओर संकेत किया । वह जगह कोई अधिक दर न थी। कुछ ही गज़ों का फ़ासला था।
बुढ़िया से विदा हो रूपनारायण ने एक बीड़ी सुलगायी और धीर गति से विवाहवाले घर की ओर चल पड़ा।
टिको गोसाइनजी के घर के सामने ही सिमटकर बैठा हुआ था । रूपनारायण को आते देखकर वह खड़ा हो गया और कहा : ___'बस, तेरी ही प्रतीक्षा थी। यहाँ काम नहीं होगा। गोसाइनजी ने शपथ दिलाकर लौटाया है और कहा है--'यहाँ फिर नहीं आना' ।"
"क्यों?"
"कैसे समझाऊँ तुम्हें ? यह घर उसी पुलिसवाले का है जो आज तक लापता है। बेचारी गोसाइनजी को दोनों ओर से संकट है। थोड़ा स्वस्थ होते ही वे मायङ चली जायेंगी। मृत पुलिस अफ़सर भी इनका भाई था । देख रहे हो न ! यह तो ऐसा काण्ड है जैसा न तो कभी हुआ है और न ही कभी सुना है। उनके
234/ मृत्युंजय