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तेरह
बाहर कड़ाके की सर्दी थी। सितारों का पता लगाने वाले आदमी की तरह रूपनारायण संजीवनी टोल के पास पहँचा ।
सामने आते हुए एक आदमी को रोककर उसने पूछा : 'भाई साहब, राइडङीया जाने का रास्ता बता सकेंगे?' उस आदमी ने रूपनारायण की तरफ़ देखकर रूखे स्वर में उत्तर दिया :
"मरना चाहते हो क्या ? ज़रा इधर तो आना, मैं भी देख लूँ उस बहादुर का चेहरा।" ___रूपनारायण असमंजस में पड़ गया। इस घड़ी पूरी सावधानी न बरती गयी तो मुमीबत खड़ी हो सकती है। इस बार उसने विनम्र होकर पूछा :
"अच्छा यह तो बता सकते हैं कि बरठाकुर का घर किधर है ?"
वह आदमी और निकट आ गया। टॉर्च की रोशनी में रूपनारायण को अच्छी तरह देखने लगा । रूपनारायण को बड़ा आश्चर्य हुआ। यह आदमी उसे निगल जाना चाहता है क्या? उसने बन्दूक़ को कसकर थाम लिया। घबराहट में कोई सवाल-जवाब भी तो नहीं हो पाता । दधि, मधु और भिभिराम पीछे चमुवा गाँव में ही रह गये थे। उनके साथ दूसरी बन्दूकें भी रह गयी थीं। उन्हें बुलाने के लिए यहाँ से किसी को भेजना भी था।
रूपनारायण वहीं खड़ा रहा। वह अजनबी भी उसे बहुत देर तक घूरता रहा। अचानक रूपनारायण की आँखें चमक उठीं। उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए उसने कहा :
___"तुम टिको तो नहीं ? कहाँ गये थे ?.."चाकोला घाट वाले खेत पर? हाथ में दाव और कुदाल भी है !..."
टिको की हैरानी प्रसन्नता में बदल गयी। उसने दूसरा ही सवाल पूछा : "क्या रास्ते में जयराम से भेंट नहीं हुई ?"
रूपनारायण को भिभिराम से पता चला था कि जयराम हातीचोङ के लोगों की सहायता से पुलिस और सी०आई०डी० के अधिकारियों का साफ़या करने की योजना बना रहा है और यहीं कहीं टिका है। यह दो दिन पहले की बात है।