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"बरुवा का घर खोज निकालने में मुझे अधिक समय लग गया था। वहाँ दरवाजे पर ताला पड़ा था। पड़ोस के ही एक आदमी ने वातों-बातों में पहले सारा परिचय पा लिया था और तभी भुइयाँ के घर जाने को कहा था। जैसे ही वहाँ पहुँची तो देखा कि वहाँ का हाल तो और बेहाल है। सारा घर पुलिस से घिरा हआ था। कलियाबर और मिछा के दो तरुणों को पुलिस पकड़ लायी थी। उनमें एक तगड़े बैल की तरह हट्टा-कट्टा और होशियार लग रहा था। जबकि दूसरा एकदम पिद्दी, दुबला-पतला और निस्तेज । उनके घरों से कुछ सामान भी जब्त कर लाया गया था। पुलिसवालों के चले जाने पर भुइयाँ के लड़कों ने मुझसे कुछ बातचीत भी की थी। दरअसल नगाँव का कांग्रेस-ऑफिस भी वहीं था। मैंने रूपनारायण के सारे कागज़-पत्र वहीं दे दिये थे।
"पर, वहाँ के देने से क्या होगा ? कांग्रेस के सभापति और शान्ति-सेना के संचालकों में से कोई तो नहीं थे वहाँ । आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर है, किसे पता है कि इस समय कौन कहाँ है ? कोई नहीं जानता । पर ये सब तथ्य की बातें हैं। काग़ज़-पत्र भुइयाँ के लड़के ने ही रख लिये थे। उस लड़के से ही धनपुर वगैरह के बारे में भी जानकारी मिली थी। फिर उसने मेरे लौटने की व्यवस्था भी कर दी थी। ब्याह-काज के लिए दो आदमी मायङ से दही लेने के लिए आने वाले थे। मोरीगाँव वाली सड़क से किसी प्रकार जीप आ जाती है । उसी से मुझे भी आने का मौक़ा मिल गया। केवल मुझे ही नहीं, गोसाइन के साथ गिरफ्तार की गयी बानेश्वर राजा की पत्नी और कई जनी भी उसी जीप में आ गयीं। ____ “लौटती बार रास्ते में भी एक और नाटक देखने को मिला । रोहा से आगे सराइबाही पहुँचते ही देखा कि स्कूल के लड़कों का एक झुण्ड हाथों में तिरंगा लिये, गीत गाते हुए सोनाई की ओर चला जा रहा था। सोनाई को पारकर वे हेकोडांबरि की ओर बढ़ गये थे । गाँव के लालुङ, मिकिर और ब्राह्मण, शूद्र आदि सभी बाहर निकलकर जुलूस देख रहे थे । शेरदिल थे वे सभी-के-सभी लड़के। क्या ठिकाना कि उनके सीने गोली से कब भून दिये जायेंगे !
"सुना है, शइकीया कहता है कि स्वतन्त्रता मिलने पर वह आत्महत्या कर लेगा। यह भी कहा जाता है कि बरहमपुर में फिन्स साहब ने तिरंगे को देखते ही जनता पर गोली चला दी थी। कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि उन मासूम लड़कों के भाग्य में क्या लिखा है। उस आंचल में सामूहिक जुर्माना वसूल करने के लिए पुलिस कल-परसों से चारों ओर फैल गयी है । किसी एक दारोगा के बारे में यह भी सुनने को मिला कि वह लागों पर ऐसे बर्बर अत्याचार कर रहा है जिन्हें सुनते ही लोगों के दिल दहल उठते हैं। वह सब सुनकर मुझे भी सब असहनीय लग रहा था । पर, अब तो वह सब मैं भी भोग ही रही हूँ।"
सारी बातें डिमि एक साँस में ही कह गयी। आग के उजेले में गीली चोली
206 / मृत्युंजय