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"इतना कर लेने पर भी तुझे संतोष नहीं हुआ और अब बुरी नज़र से मेरे पास भी आया है !"
इकीया ने इस बार टॉर्च की रोशनी नीची कर ली। सहसा उसकी हँसी ग़ायब हो गयी। उसका चोट खाया हृदय अपमान की ज्वाला से भड़क उठा । निर्लज्ज वासना से दहकती हुई उसकी बाँहें डिमि को दबोच लेने के लिए छटपटा रही थीं । ऐसी खूखार औरत को वह अपनी मर्दानगी जताने के लिए अधीर हो उठा । शइकीया पहले भी ऐसी अनेक औरतों को अपनी हवस की भट्टी में झोंक चुका था। हाथ में रिवाल्वर और साथ में पुलिस की वर्दी का रौब होने पर निषिद्ध संभोग करने की उसकी वासना प्रबल हो उठी। केवल उसका ही नहीं, सभी शक्ति सम्पन्न दुराचारियों के मनोभाव ही वैसे होते हैं । औरत जितनी लुभावनी होती है, वासना की ज्वाला उतनी ही अधिक भड़कती है ।
इकीया ने कठोर स्वर में कहा :
"उस समय एक नज़र देख लेने के बाद से ही मैं तुझे चाह रहा था । इसीलिए तुझे गिरफ्तार नहीं किया था । और सबको चालान कर चुका । क़ानूनन तो तुझे पहले ही गिरफ़्तार कर लेना चाहिए था। तब भी ऐसा कहती है ? चल, अब ये दाव फेंक दे।"
दाव पर डिमि की मुट्ठी और अधिक कस गयी। कड़कते हुई बोली : "तू यहाँ से जाता है या नहीं ? मैं कोई तेरी रखैल नहीं हूँ ।"
"तो धनपुर तेरा कौन था ? तेरा मरद ?" डिमि की सारी देह क्रोध से झन्ना उठी । क्षण-भर वह कोई जवाब नहीं दे कि धनपुर उसका क्या है । शइकीया से झूठ बोलने से भी कोई फ़ायदा नहीं । उसके सामने ही धनपुर को उसने एक बार चूमा भी था । यह सच है कि धनपुर उसका पति नहीं, लेकिन उसे वह बचपन से ही प्यार करती आयी थी और उसकी मृत्यु के बाद भी उसे वह भूल नहीं पा रही थी ।
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शकीया के होंठों पर मुसकराहट फैल गयी । बोला : "तू अधिक नखरेबाज़ी मत कर । ज़रा ठीक से सोच ले । छोड़ दूँगा । तुझे भी गिरफ़्तार नही करूँगा । सच-सच बता, वे ठहरे थे ? कौन -कौन थे वे लोग ?"
डिमि उसकी चाल भाँप गयी । वह फिर कड़क उठी : "यह सब क्या बकवास है ! निकल जाओ यहाँ से !
सकेगा और न मुझसे तुझे कोई बात ही मिलेगी ।"
इस बार शइकीया ने जेब से रिवाल्वर निकाल ली और बोला :
" इसे देखती हो न ?”
इसके पहले डिमि ने शायद रिवाल्वर नहीं देखी थी। टॉर्च की रोशनी में
200 / मृत्युंजय
डिलि को भी मैं लोग तुम्हारे यहाँ
न तो मुझे पकड़