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तीन
मधु को हलका-हलका बुख़ार था। मगर उसके लिए यह मामूली बात थी। सच में चिन्ता उसे दूसरी ही कुरेद रही थी और वह थी कि रेलगाड़ी के उलटने से इंजन और डब्बे ही चर-चर नहीं होंगे, सैकड़ों जन की जानें भी जायेंगी। धर्मअधर्म का यह यक्ष-प्रश्न उसे निरन्तर कुरेद रहा था। भले ही उनकी चमड़ी गोरी हो; मगर हैं तो वे मनुष्य ही ! ___उसके पीछे-पीछे धनपुर चला आ रहा था। अपनी बँधी चाल। बीड़ी पीता हुआ । निर्द्वन्द्व । चारों ओर के घुप अँधेरे में उसकी बीड़ी का गुल आकाशदीप-सा टिम-टिम कर उठता था। ___मधु को रह-रहकर लगता कि आज यदि महात्माजी जेल के बाहर होते तो इस प्रकार के कामों की अनुमति कभी नहीं देते । गोसाईजी के यहाँ भी जब इस कार्यक्रम पर विचार किया जा रहा था, उस समय भी अपनी सहमति उसने व्यक्त नहीं की थी। अब कार्यक्रम जब हाथ में ले लिया गया तब उसने किसी प्रकार की बाधा उपस्थित करना ठीक नहीं समझा। असमंजस में पड़े रहना, ग़लत सलाह देना, या रास्ते में रोड़े अटकाना : उसे कभी नहीं सुहाया । गोसाईजी को तो वह देवता-स्वरूप मानता रहा है । आज भी मानता है। लेकिन मानव-हत्या के भय से ही उसकी आत्मा काँप रही है । उमके मन में भी वैसा ही विपाद उत्पन्न हो रहा था जैसा कभी अर्जुन के चित्त में उत्पन्न हुआ था। काम करने से वह कभी नहीं कतराया। लेकिन आज ! आज अपने कर्तव्य-पालन में उसे द्विधा सता रही थी।
लय राम मछली का ठेकेदार है। मायङ की गारङ और पकरिया झीलों का ठेका उसे ही मिलता रहा है । हजारों की कमाई उसने मछली की विक्री से की है। बन्दूक का लाइसेंसदार भी है। साथ के साथ यहाँ जूट की लम्बी-चौड़ी खेती भी जमा रखी है । घर गुवाहाटी नगर में है। एक नगाँव में भी है। गोसाईजी का अन्तरंग मित्र जैसा है वह ।
लेकिन लयराम की धनाढ्यता ही मधु जैसे कई मछुओं के मरण का कारण भी बनी । स्वयं मधु जिस झील में एक युग से मछली मार-मारकर अपनी जीविका