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धनपुर को बहुत दिनों के बाद पाकर डिमि बड़ी आनन्दित हुई। जो भी हो उसने एक दिन डिमि से प्यार हो आने की बात कही थी। डिमि को वह आज भी याद है। विवाह नहीं हुआ तो क्या हुआ, मन के द्वार भी नहीं खुलेंगे क्या? पर अब तो धनपुर को भी एक लड़की मिल गयी है। कैसे बेधड़क हो सारी बातें बतायी थीं उसने । सुभद्रा का चेहरा बिलकुल उसके जैसा ही है। इसीलिए उसे अपना बनाने की इच्छा हुई । भला इससे अधिक दूसरा आदमी और क्या कहेगा? उसके प्रति उसमें बहिन जैसा ही स्नेह उमड़ पड़ा है। उसमें कोई और भाव नहीं है । सच बात तो यह है कि वह अपने देवर के मंगल के लिए ही उसके साथ यहाँ तक आयी है। इस स्थान के चप्पे-चप्पे से वह परिचित है। इस स्थान पर ही बाघ कई आदमियों को मारकर खा गया है। अभी दो दिन ही तो हुए हैं जब उसका देवर भी बाघ का आहार बन गया। बाघ को मारने की बात कहकर ही इन दोनों ने नोक्मा से बन्दूकें माँग ली हैं। आज रात ये बाघ को मारकर ही रहेंगे। जंगल के पास ही एक मचान है। अब तक ये उस पर अड्डा जमा चुके होंगे। वह उन्हें रास्ता दिखाती हुई आयी है। बाघ से बचने के लिए उसने बचपन में अपनी माँ से एक मन्त्र सीखा था। उसकी माँ गाँव की जानी-मानी ओझाइन थी। डिमि मन्त्र जानती है यह सोचकर ही नोक्मा ने उसे इनके साथ आने की अनुमति दी है। ___ भिभिराम से सारी बातें विस्तारपूर्वक कहने का साहस डिमि नहीं कर सकी। उसने मात्र इतना ही कहा :
"मैं नोकमा से कह आयी हूँ। मैं न होती तो इन्हें इधर का रास्ता कौन दिखलाता? दोनों रास्ता नहीं जानते थे।"
डिमि के यहाँ आने के गूढ़ रहस्य को जानने के लिए भिभिराम के मन में कोतूहल हो रहा था। लेकिन उन सब प्रश्नों को पूछना उचित न होगा, सोचकर वह चुपचाप रह गया। वह एकान्त मन से सिगरेट पीता रहा। __ इधर डिमि ने भी एक सिगरेट जला रखी थी। वह पूनम के चाँद को टकटकी लगाये देख रही थी। साथ ही वह गुनगुनाकर मन्त्र पढ़ रही थी। वाघ झाड़ने की मन्त्र जानते हुए भी वह टेकेरे या ओझाइन नहीं थी। किन्तु हड़बड़ी में भला इतनी रीति-नीति कौन मानता है ? उसकी तो मात्र एक इच्छा थी-धनपुर को बाघ के आक्रमण से बचाना। मन्त्र पढ़ते-पढ़ते न जाने उसे क्या हो गया । उसे लगा जैसे चाँद नाचने लगा है-एकदम रिचमा नृत्य की तरह । नहीं, रिचमा का तरह नहीं बल्कि ओझा की तरह । नृत्य के ताल पर घर-द्वार, आर्णाम-आटुम, पेड़-पौधे और कपिली-सब-के-सब झूमने लगे हैं। बाघ मारने के पहले उसके गांव में 'रंकेर पी' उत्सव मनाया गया था। उस समय गाँव के अनेक लोग सुअर, पाठे आदि की बलि देते हैं। मुखिया के घर पर भोज आयोजित होता है। उसके
86/ मृत्युंजय