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"गाय के बछड़े को बाघ खा गया है। सुन रहे हो, कैसी कातर होकर रंभा रही है।"
"हाँ, मैं भी उसकी आवाज़ सुनता रहा हूँ" वह रो रही है।" धनपुर कहताकहता रुक गया और सोचने लगा : क्या मनुष्य अपने मन का भाव इतनी अच्छी तरह व्यक्त कर पाता है, जबकि उसके पास शब्द भी होते हैं ! शायद नहीं ! थोड़ी देर के बाद वह फिर बोला, "यह गाय नहीं, हमारी माँ है ।"
"कौन माँ ? तुम्हारी कामपुर वाली माँ !" डिमि ने पूछा ।
"नहीं, यह सबकी माँ है - तुम्हारी भी, मेरी भी, गोसाईजी की और डिलि की भी - हम सबकी । वही आज गोशाला में बँधी है । उसके बछड़े को बाघ ने मार दिया है और माँ रो रही है। क्यों ! बता सकती हो ?"
fsfa ने इसके पहले ऐसा कभी नहीं सुना था । उसका हृदय आवेग से भर उठा । अपनी झोली से उसने छत्छत्' का टुकड़ा निकाला और उसे दियासलाई की तीली जलाकर सुलगा दिया। उसकी सुगन्ध से धनपुर की तबीयत खिल उठी । उसका उद्विग्न चित्त शान्त और सहज हो गया । सिगरेट फेंकते हुए उसने कहा :
"मैं इसी सुगन्ध की बहुत दिनों से बाट जोह रहा था । यह सुगन्ध है शान्ति की और सच्ची मनुष्यता की । यह है मेरी प्रियतमा की सुगन्ध । तुमने मुझे उबार लिया डिमि ! थोड़ी-सी और जलाओ न !”
डिमि ने झोली से छत्छत् का एक और टुकड़ा निकालकर जला दिया । बोली : " इसी की सुगन्ध तो तुम आज हमारे उत्सव में भी पाओगे । धूप, चन्दन या अगरबत्ती की तरह इसकी सुगन्ध भी बड़ी प्यारी लगती है । तुम्हें इसके पहले इस जैसी सुगन्ध नहीं मिली क्या ?"
"ॐ हूँ ।" धनपुर ने डिमि की ओर देखते हुए कहा, "उसके पहले केवल अत्याचार की दुर्गन्ध मिली थी। मिलिटरी द्वारा सुभद्रा के साथ किये गये दुराचार के बाद उसकी जीर्ण देह को ढोकर लाते समय वही दुर्गन्ध मिली थी । अब भी वह दुर्गन्ध नाक में बसी है।"
प्रसंगवश धनपुर ने वर्तमान आन्दोलन के दौरान गाँववासियों पर मिलिटरी द्वारा ढाये गये अत्याचारों की कहानी दोहरा दी। उस वर्णन को सुनकर डिमि को मानो काठ मार गया । बोली वह :
"अब समझी हूँ तुम्हारी सारी बातें। लेकिन उनके साथ लोहा लेने पर और अधिक अत्याचार ही करेंगे ।"
" करने दो । तब भी हम अपनी सारी शक्ति लगाकर उन्हें यहाँ से भगाने की कोशिश करेंगे ।" धनपुर का उत्तर या.
1. एक पेड़ - विशेष की सुगंधित छाल ।
106 / मृत्युंजय