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परिणाम तो नहीं था वह ?
नहीं, नहीं, प्रतिशोध तो लेना ही होगा। कनकलता, भोगेश्वरी, तिलक डेका, कमल गिरि आदि को जीते जी मारने का प्रतिशोध तो लेना ही होगा। यही नहीं, देश को आजाद भी करना होगा। उसी के लिए तो सब कुछ होम कर यहाँ तक आये हैं। यह काम तो करना ही होगा । तो फिर चलाओ हथौड़ी और घुमाओ रिच, जब तक फ़िशप्लेट के जोड़ न खुल जायें। रे मन, अभी और सारी बातें भूल जा । घर की बात, कामपुर में रह रहे परिवार की बात, सगे-सम्बन्धियों की बात, मित्रों और बन्धु-बांथओं की बात - सबको भूल जा । सिर्फ़ हथोड़ी चला, हथोड़ी !
रूपनारायण संकेत की प्रतीक्षा में था और बार-बार घड़ी की सुइयों की ओर देख रहा था । भिभिराम ने बहुत समय लगा दिया । गश्ती दल का क्या विश्वास ? उत्तर - दक्षिण, पूरब पश्चिम - चारों ओर गश्ती दल तैनात हैं । तिस पर लयराम से यदि शइकीया को इस काम का पता चल गया तो किसी भी क्षण संकट उपस्थित हो सकता है। किसी भी क्षण इस जीवन के जड़ बन जाने की सम्भावना है ।
उसने वहीं से एक बार गोसाईं की ओर देखा : एकदम निर्जीव से ही मिट्टी में सने पड़े हैं । उनकी देह में किसी प्रकार की हलचल नहीं है । उनकी बीमारी फिर उभर आयी है क्या ?
उसने कान लगाकर गोसाईं की सुगबुगाहट का अनुमान लगाया : लगता तो है। खांसी चल तो रही है। उन्हें उठने के लिए कहूं क्या ? नहीं नहीं । जैसे हैं वैसे ही भले हैं। पहले जो कुछ तय हुआ है कि कौन कहाँ रहेगा उसमें अब किंचित् भी फेर-बदल करना ठीक नहीं होगा । आदमी यों भी कम है । बन्दूकें भी तो कम ही हैं। थोड़ी-सी फेर-बदल हुई नहीं कि जान पर बन आयी। ऐसे समय उनका दमा उभरता है तो किया क्या जा सकता है ?
अचानक रूपनारायण ने देखा - एक नाग पत्थर से रेंगता हुआ अपनी बाँबी में घुस गया। शायद वह अब तक धूप सेंक रहा था । रूपनारायण का कलेजा दहल उठा । सोचने लगा : क्या यह क़िस्से-कहानियों में ही होता है कि नाग द्वारा किसी के सिर पर फण फैलाने से कोई राजा हो जाता है। जैसाकि नीलाम्बर के बारे में कहा जाता है कि वह कामपुर का राजा बन गया था । वह भी राजा बनेगा क्या ? यानी उसका दल भी गोरे साहबों से राजपाट पा लेगा क्या ?
क़िस्सा सुनने में अच्छा लगता है पर उस पर विश्वास नहीं होता ।
उसने जेब से एक सिगरेट निकालकर जला ली। पता नहीं क्यों उसे आरती की याद आ गयी । वह इसे यदि ऐसी हालत में देख लेती तो भयभीत हो शायद
मृत्युंजय | 161