________________
सैनिकों की कुल संख्या के बारे में अन्दाज़ लगा रहा था। कुल संख्या कितनी होगी, कुछ भी तो नहीं कहा जा सकता। पटरी के पासवाले दो डिब्बे जलकर राख हो चुके थे। और डिब्बों के खाई में गिरने से उनमें लदे सैनिकों के प्राण भी निकल ही गये होंगे। जो कुछ बचे हैं, उनके प्राण छूटने में भी अधिक समय नहीं लगेगा। रेल के उलटने की आवाज पासवाले मिलिटरी कैम्पों में अवश्य ही सुनाई पड़ी होगी। उनका जत्था यहाँ शीघ्र ही आ जुटेगा। और तब सब जगह छान-बीन शुरू हो जायेगी। इस टीले पर तो वे सबसे पहले आयेंगे। अतः, यहाँ ज़रा भी रुकना खतरे से खाली नहीं है।
__ रूपनारायण ने तीनों बन्दूकें उठा लीं। बड़ी तेजी से भागता हुआ वह गोसाईंजी के पास जा पहुँचा । गोसाईंजी तब भी पीड़ा से कराह रहे थे । उनके मुख में अब भी सोंठ का टुकड़ा था । रूपनारायण की टॉर्च की रोशनी देख बन्दूक का सहारा लेते हुए वे किसी प्रकार खड़े हो गये और बोल पड़े :
"मैंने आवाज़ सुनी है । लगता है सब ठीक ही रहा। अब यहाँ से चले जाओ। तुम आगे-आगे चलो।"
तीनों बन्दूकों का बोझ रूपनारायण को भारी पड़ रहा था। पर उससे भी अधिक भारी हो रहा था, दुर्घटना के दृश्य का स्मरण कर दुःखी मन का बोझ । बड़ा ही हृदय-विदारक था वह दृश्य । उसे देखकर उसका सिर चकरा उठा था। दुर्घटना की प्रचण्ड आवाज़ और फ़ौजियों की दर्दभरी चीख उसके हृदय को रहरहकर दहला जाती थी। इसीलिए वह कुछ भी न बोलते हुए चुपचाप आगे-आगे चल रहा था और गोसाईं अपने को संभालते हुए धीरे-धीरे उसके पीछे । ___ आकाश में चाँद चमक रहा था, पर तब भी पेड़ों के तले धुंधला अन्धकार ही था। ___ गोसाईंजी के हाथ तब भी आदमी के ख न से सने थे। वह ख न उनके लिए असहनीय हो रहा था। थोड़ी दूर तक चलने के बाद उनके हाथ-पांव कांपने लगे। ठण्ड तो उन्हें पहले ही जकड़ चुकी थी, तिस पर बुखार के बढ़ जाने से उनकी देह अब ढीली पड़ती जा रही थी और मन तो और भी अस्थिर हो चुका था । मन का आवेग संयमित न हो सकने पर वे बोल उठे : ___ "काश, किसी दुश्मन को यों न मारकर यदि उससे आमने-सामने संग्राम किया होता तो कितना सही होता! पर इन सबने वैसा करने नहीं दिया। काश, महात्माजी आज बाहर होते तो शायद ऐसी लड़ाई नहीं होती !"
रूपनारायण का आत्मविश्वास हिल उठा । दुर्घटना का साक्षी उसका मुख मलीन हो गया। वह इस भावना से ग्रस्त नहीं हुआ था कि उसने कोई भूल की है, फिर भी अब उस में पहले-सी उमंग नहीं रह गयी थी। आदमी के ख न से हाथ रंगनेवाला व्यक्ति कभी आनन्दित नहीं होता। युद्ध बड़ा ही निष्ठुर होता है।
180 / मृत्युंजय