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आँखें अनन्त आकाश की ओर उठी, अस्फुट-सा इतना ही मुंह से निकला, "शायद छिपाकर अच्छा ही किया; पर उसने आत्महत्या क्यों की दीदी?"
धनपुर के चेहरे पर यन्त्रणा की झाईं उभर चली थी। उसने मुंह घुमाकर दूसरी ओर कर लेना चाहा पर कर नहीं सका । कॅली दीदी ने झट उसका सिर उठाकर गोद में रख लिया। धनपुर ने अपने को किसी प्रकार सँभालते हुए फिर
पूछा:
"बताओ न दीदी !" और कॅली ने सारी घटना ज्यों की त्यों सुना दी।
एक उसाँस धनपुर के कण्ठ से निकली धीरे-धीरे बोला वह : "अर्थात् सुभद्रा ने निराश होकर आत्महत्या की। प्रतीक्षा करने का धैर्य उसमें न था । पर यदि मैं बच जाता तो! खैर, अच्छा हुआ। अब मैं निश्चिन्त हो गया-एकदम निश्चिन्त। न कोई चिन्ता करनेवाला घर में, न रोहा में । शान्तिपूर्वक जा सकंगा।"
थोड़ा हिलने की उसने चेष्टा की, या कँपकँपी-सी भीतर से ही आयी। कॅली दीदी की आँखों में आँखें डालते हुए बोला : ___ "दीदी, देश को स्वाधीन देखना मेरे लिए नहीं बदा था। आप सब लोग जूझेंगे, स्वाधीनता को भी देखें-भोगेंगे । आन्दोलन की टूटती रीढ़ संभालने में समय लगेगा।"
उसकी दृष्टि अपने में ही खो गयी। आसपास जो थे, उसे देख रहे थे । स्वयं वह कहाँ देख रहा था ? किसे? कॅली दीदी की उँगलियाँ उसके माथे को सहलाने लगी थीं। हठात् धनपुर के मुंह से निकला :
"हाँ, सब होगा; रह जायेगा मात्र मेरा सपना । सपना।"
हाँ, धनपुर का सपना रह जायेगा । भविष्य में लोग चर्चा भी करेंगे। कामकाज के बाद जब अलाव तापते होंगे तो असम्भव नहीं कि उसका भरा-पूरा चेहरा लोगों को याद हो आये। और फिर चल पड़ेंगी बातें । उसकी, उसके दुःसाहसी स्वभाव की, उसके शारीरिक गठन की । सचमुच कितना आकर्षक और प्रभावपूर्ण था उसका व्यक्तित्व !
माता-पिता से धनपुर ने देह पायी थी अवश्य, पर उसका मूल्य समझा था स्वयं उसने। इसीलिए अपने देह-रूपी हल को वह उसमें जुते बैल की तरह खींचता रहा था। आज मानो हल का काम समाप्त हो गया था। तभी उससे मुक्त होकर सो जाना चाह रहा था। निश्चिन्त, चिरनिद्रा में।
उसके हृदय की धड़कन तेज़ हो चली थी। कॅली ने उसके बालों को एक ओर करके माथे पर हाथ फिराते हुए कहा : "साइस से काम लो भइया, एक और सुभद्रा ला दूंगी।" एक हलकी-सी मुसकराहट धनपुर के होंठों पर फूट आयी। कितनी निष्प्राण,
मृत्युंजय | 175