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जंगल से दुर्गन्ध आ रही थी। दोनों को उससे अन्दाज़ हो गया कि आस-पास ही कहीं बाघ बैठा है ।
इधर आहिना कोंवर हर क्षण किसी अज्ञात मुसीबत की आशंका से ग्रस्त हुआ जा रहा था । गोसाईंजी के लौटने की राह देखते-देखते उसकी आँखें पथरा गयी थीं । चट्टान पर फैली जूठन को नदी में फेंकने के बाद ही उसे कपिली की ओर से कुछ आवाजें सुनाई पड़ी थीं । आवाज़ कैसी थी, इस बारे में वह कुछ अन्दाज़ नहीं कर पाया था। लेकिन उसका मन तभी से शंकित हो उठा था । कुछ दूर आगे बढ़ एक ऊँचे टीले पर खड़ा हो घाट की ओर से आनेवाले रास्ते पर उसने नज़र भी दौड़ायी थी । । रास्ते के एक मोड़ पर उसे तीन आदमी इधर ही आते हुए दिखे थे । उस समय उसकी दृष्टि चौंधिया रही थी। बुढ़ापे की कमज़ोर आँखें उन चेहरों को पहचानने में असमर्थ ही रहीं । बेचारा दुखी हो वापस आकर उसी चट्टान पर फिर बैठ गया और अफ़सोस करने लगा ।
रूपनारायण पर नज़र पड़ते ही आहिना कोंवर बोल उठा : "हे कृष्ण, तीन आदमी आते हुए दिखे हैं ।"
गोसाई ने कुछ कहा नहीं । रूपनारायण ने गोसाईजी की ओर देखा । उसने समझ लिया कि गोसाईजी भी उन तीनों के बारे में कुछ अनुमान नहीं कर पाये हैं । असम्भव नहीं कि कहीं कुछ हो गया हो । ये दुश्मन भी हो सकते हैं और साथी भी। दुश्मन हुए तब तो संकट ही समझो। मुठभेड़ होगी। फिर या तो वे मरेंगे या खुद को मरना पड़ेगा। साथी हुए तो कोई चिन्ता की बात नहीं। हाँ, उन्हें यहाँ रखना अवश्य कठिन होगा ! किन्तु उनके लिए बाट जोहने का समय है नहीं ।
इधर अब जाने का भी समय हो रहा था । गोसाईजी ने निरुपाय हो रूपनारायण की ओर देखा । रूपनारायण तो तैयार था ही। बोला :
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"चलिये, आगे बढ़कर एक बार देख तो आयें । नाव डूबती है तो चढ़ते समय या फिर उतरते समय । बीच मझधार में किसी छिद्र का होना उचित नहीं है ।' उसने अपनी घड़ी देखी, और कहा, "अपने पास अब मात्र पन्द्रह मिनट का ही समय रह गया है ।"
देर जब होनी ही है तो फिर उपाय क्या है !
गोसाईं और रूपनारायण टीले की ओर बढ़ गये और उसके ऊपर खड़े होकर आहिना कोंवर की नाई ही कपिली घाट से आनेवाले रास्ते की ओर कुछ देर तक देखते रहे। रास्ता जंगली और पतला था । पास ही एक ओर ऊँचे स्थान पर से रूपनारायण ने दृष्टि दौड़ायी । उसे एकाएक कई व्यक्तियों के चेहरे दिखे ! चढ़ाई की ओर उन्हें सीधे रास्ते पर आते देख उसे अनुमान हो गया कि वे पुलिस या मिलिटरीवाले नहीं हैं । उसे यह भी निश्चय हो गया कि आनेवालों में एक महिला भी है । वह गोसाई की ओर देखते हुए बोला :
मृत्युंजय | 145