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देर बाद गोसाईजी भी नीचे उतरे और बाँसों की झाड़ी के तले लेटकर बन्दूक का निशाना साध लिया : काम पूरा न होने तक उसी अवस्था में उन्हें लेटे रहना है। मधु से संकेत मिलते ही गोली दाग देनी होगी । या फिर उसी हालत में रहना होगा। निर्देश के अनुसार ही काम होगा। दुश्मन के आदमी को देखते ही गोली मार देनी होगी। ट्रॉली के गिरते ही उस पर सवार सभी आदमियों को भी गोली से उड़ा देना होगा।
अभी गोली चलाने में देर है ।
नीचे कीचड़ होने के कारण गोसाईं की पूरी देह थोड़ी ही देर में भीग गयी। गीली मिट्टी का स्पर्श चादर को भेदकर अब उनकी छाती की हड्डियों को भी भेदने लगा था। धीरे-धीरे हाथों में भी कँपकँपी शुरू हो गयी। मिट्टी की देह मानो मिट्टी में ही मिलती जा रही थी। तभी उन्हें गोसाइन के आंसू भरे चेहरे की स्मृति ने झकझोर दिया : पुलिस उसे भी पकड़कर ले गयी है। उसकी कोख में एक शिशु पल रहा है, तब भी पुलिस ने उसे नहीं छोड़ा । भला उसने किसी का क्या बिगाड़ा ?.."पता नहीं लड़का होगा या लड़की-कौन जाने क्या होगा !
तभी उनके ठीक ऊपर की डाल पर कहीं से एक पक्षी आ बैठा । गोसाई ने सिर उठाकर देखा। वे सोचने लगे, ओ पंछी, तू कहाँ से आया है ? कहाँ जायेगा ? तू चुप क्यों है ? यह इतना सुन्दर रूप क्यों है तेरा ? तेरे ये पंख इतने नीले और सफ़ेद क्यों है ? और तेरी यह चोंच-यह इतनी लाल क्यों है ? ओ अनजाने, तू अपनी छोटी-छोटी आँखों से इधर-उधर देख रहा है ? ओ प्राणधन ! मेरे जिगर के टुकड़े ! तू उससे मिलकर आया है क्या ? क्या वह मुझसे रुष्ट है ? बता न ! हिरणी का क्रन्दन वह अब भी सुनती है क्या ? . -तू बड़ा निर्दय है। कुछ बोलता क्यों नहीं? चुप क्यों है ? कुछ बुरा समाचार है क्या? धत्, तू सीटी बजाकर क्या कहना चाहता है ? बोलता क्यों नहीं ? देख, मुझे बड़ा जाड़ा लग रहा है । बड़ी सर्दी है । खाँसी भी आना ही चाहती है। पर तेरे सामने मैं खाँसूंगा नहीं । तेरा क्या ठिकाना, कहीं उड़कर तू मेरी बीमारी की खबर उस तक न पहुँचा दे। पर भला मैं तुझसे कुछ छिपाकर कैसे रख सकता हूँ ? नहीं, कुछ भी नहीं रखूगा।"अच्छा, तूने मुझे बचपन में देखा था क्या ? बचपन में भी मैं घर छोड़कर मारा-मारा फिरता था। तब एक भूत सवार था मुझ पर। मैंने देश का उद्धार करने का संकल्प लिया था । लेकिन यह काम बड़ा ही कठिन है । तेरे-जैसा ही आज़ाद बनना चाहता था। उसके लिए ही मैंने यह यज्ञ प्रारम्भ किया है । शायद, तुझे बहुत बुरा लग रहा है, है न ? नहीं-नहीं, बुरा क्यों लगेगा ? तू तो मेरे सुख-दुःख का साथी है। बोल न ! कम से कम एक बार तो बोल ! क्या तू मेरे पिताजी के पास से आया है ? या माँ के पास से आया है ? बता न ! उन्होंने मुझे स्वर्ग में बुलाया है क्या ? वैतरणी नदी कैसी है ?
158 / मृत्युंजय