________________
"ये लोग अपने ही आदमी होंगे । निश्चय ही कोई विशेष खबर होगी । अन्यथा ये आते क्यों ? फिर भी थोड़ा सावधान होकर ही रहना अच्छा है।"
गोसाईजी का मुख-मण्डल चिन्तित हो उठा।
दोनों नीचे उतर आये और आहिना कोंवर के साथ ही थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ की ओट ले खड़े हो गये।
"बन्दूक हाथ में संभाले रखो, हे कृष्ण ।" आहिना कोंवर ने कहा।
कोई कुछ नहीं बोला । मनहस साँझ की धूप और भी मनहूस लगने लगी थी। मानो सब ओर उद्वेग भरी खामोशी छा गयी थी। किसी चिड़िया की आवाज़ भी उन्हें सुनाई नहीं दे रही थी। हां, झरने का क्षीण झर-झर अवश्य ही कहीं दूर से आनेवाली आवाज-सी मालूम पड़ रहा था।
कोई दसएक मिनट तक रूपनारायण घड़ी देखता रहा । राह देखते-देखते ऊब-सी होने लगी। कलेजा धक्-धक् करने लगा। गोसाईं ने अण्डी चादर से अपनी छाती को और अच्छी तरह ढाँक रखा था। खाँसी-दमा के रोगी जो ठहरे । आहिना कोंवर कोई पद बुदबुदा रहा था। इस प्रकार दो मिनट और बीते । तभी एक सीटी सुनाई पड़ी । सीटी की आवाज़ सुन गोसाईं का साहस लौट आया। बोले :
__"ये अपने ही आदमी हैं । थोड़ा आगे बढ़कर देखा जाये।" __ पेड़ की ओट से पहले गोसाईं बाहर आये और चट्टान पर बैठ गये। थोड़ी देर बाद बलबहादुर की आवाज़ सुनाई पड़ी। फिर उसकी आकृति भी दिखी। उसके बाद दधि, और दधि के पीछे कॅली की आकृति स्पष्ट दीख पड़ी। रूपनारायण ढलान पर आ एक चट्टान पर खड़ा हो गया। आहिना कोंवर भी वहीं आ गया।
और वे तीनों भी वहीं आ पहुंचे।
"मैं तो सोच रहा था कि भेंट होगी ही नहीं। बलबहादुर नहीं होता तो यहाँ तक आना भी मुश्किल था," कहते हुए दधि मास्टर वहीं बैठ गया। कॅली तब भी हाँफ रही थी। एक तो चढ़ाई का रास्ता और तिस पर उसका बड़ी तेज़ी से चलकर आना । केवल बलबहादुर ही शान्त था । रूपनारायण बलबहादुर के मुखमण्डल का बड़े गौर से निरीक्षण कर रहा था : गोरा और चमकदार मुखड़ा। बंगाली मूर्तिकारों द्वारा निर्मित महिषासुर के मुख को देख लेने पर उसे देखने की आवश्यकता नहीं रह जाती। मूंछे भी चमकदार । और आँखें एकदम निर्विकारउनमें कहीं किसी प्रकार का कोई गढ़ भाव नहीं।
दधि क्षणभर चुप रहा। उसके गाल, मुख, आँखें-सभी धंस गये थे । आँखें लाल हो आयी थीं । थूक गटकते हुए बोला :
"लयराम हाथ नहीं आया। शायद अब तक वह पकड़ लिया गया होगा। शइकीया को सारी बातें मालूम हो गयी होंगी, उसकी जिम्मेदारी जय राम पर सौंप
146 / मृत्युंजय