________________
जंगल का आगे का रास्ता बड़ा ही बीहड़ था। चांदनी और अंधेरे के मिले-जुले उस सन्नाटे में पास-पास खड़े होने पर भी सबके हृदय काँप रहे थे-भय से नहीं, किसी अज्ञात आशंका से। सबके-सब एक दूसरे की उपस्थिति के कारण साहस जुटा रहे थे। मृत्यु और जीवन की सीमा-रेखा सभी को क्षीण होती हुई लग रही थी। गोसाईं की खाँसी भी अभी थोड़ी शान्त थी। ___ कुछ देर बाद डिमि माणिक बॅरा वगैरह को साथ लिये आ पहुँची। आते ही आहिना ने कहा, “एक बड़ी बात हो गयी, गोसाईंजी !"
"क्या ?"
"नेपाली बस्ती पुलिस से भर गयी है। हमने जिस घाट से नदी पार करने की बात सोची थी, अब उस घाट से पार करना सम्भव नहीं होगा।" आहिना कोंवर के बदले माणिक बॅरा ने उत्तर दिया।
"अब चौथाई मील और आगे बढ़ना होगा। चलिये, देर करने की आवश्यकता नहीं है । डिमि, तुम अब लौट जाओ। जयराम को मायङ जाने के लिए कह आया हूँ। वह भी कम भगत नहीं है। कह रहा था कि गारो पोशाक़ पहनकर जायेगा । वैसे है चतुर, तब भी कुछ कहा नहीं जा सकता कि क्या होगा। इस बीच लयराम यदि पुलिस के साथ हो गया होगा तो सर्वनाश ही समझो। वे रेलगाड़ी को उलटने के पहले हमें ही उलट देंगे।" माणिक बॅरा का चेहरा चाँदनी की एक रेखा के पड़ते ही झिलमिला उठा।
"रेलगाड़ी को उलटकर ही छोड़ेंगे । ढीले क्यों पड़ रहे हैं आप लोग? चलिये, चलें । नेपाली लोग नावों पर हैं या नहीं?" धनपुर गरज उठा।
"हैं। वे वहुत पहले के ही गये हुए हैं।" माणिक बॅरा ने जवाब दिया।
"तो आप लोग क्यों नहीं पहुंचे वहाँ ?" धनपुर का स्वर इस बार और अधिक कठोर हो आया था।
"क्या कहूं? इन्होंने अफ़ीम जो..." माणिक बॅरा की बात पूरी हुई भी नहीं थी कि बीच में ही धनपुर ने कोंवर की ओर देखते हुए कहा :
"आप अगर अफ़ीम की डिबिया यहीं फेंक नहीं देते तो हम यहाँ से एक डग भी आगे नहीं बढ़ेंगे । यह मुझे बिलकुल सहन नहीं है। अफ़ीम खाकर दुश्मन से जूझना मुमकिन नहीं । इसी अफ़ीम ने आपको आलसी बना दिया है और हम सब भी इसी वजह से कुछ-कुछ ढीले पड़ते जा रहे हैं । बोलिये, फेंकते हैं या कि
नहीं ?"
धनपुर की बातें सुन सभी अवाक् रह गये । अपमान की भट्टी में जलते हुए आहिना बोला : ___ "देश का काम करने के लिए आने पर, हे कृष्ण, इस छोकरे की भी फटकार सुननी पड़ी है । तुम हो कितने पानी में ? मुझे तुम्हारे उपदेश की ज़रूरत नहीं।
मृत्युंजय | 131