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है । देखते नहीं, इस साल धान की फसल कितनी अच्छी हुई है। खेतों को देखते ही मन आह्लादित हो उठता है । फिर इन बातों को सोचने से लाभ ही क्या है ? किसके साथ कर रहे हो तुम बातें ? मुझे तो अब चिन्ता हो रही है । चलने का समय हो रहा है । उनमें से कोई भी दिखाई नहीं पड़ रहा है अब तक ।"
गोसाई की बातें सुन भिभिराम ने हँसते हुए कहा :
"शायद आपने हमारी बातें नहीं सुनीं । हाँ, हम बातें भी तो धीरे-धीरे ही कर रहे थे न ! यह हमारी तरफ़ की ही मिकिर लड़की है - डिमि । यहीं गारो गाँव में ब्याही गयी है ।"
गोसाईं आगे बढ़ आये | पूछा :
"डिमि यानी डिलि की पत्नी, है न ?”
fsfa गोसाईं को पहचान गयी । मुसकराती हुई बोली :
"अरे, ये तो हमारे दैपारा के गोसाईंजी हैं ! आप कब आये ? यह आश्रम भी तो आपका ही है न, क्या हालत बना रखी है आपने इसकी ? हमारे यहाँ के लोग जब भी इधर से गुज़रते हैं तो घर लौटने पर खेद प्रकट करते हैं । गोसाईंजी के आश्रम पर उल्लू और लकड़खोदे बैठते हैं। दुनिया भर के चरवाहे यहाँ आकर हाथ मुंह धोते हैं, थूक खखार फेंकते हैं। बातें कहते हुए छाती फटने लगती है । इतने दिनों बाद आज यहाँ की याद कैसे आ गयी ? आप आ कैसे गये ?"
गोसाई ने खिली चाँदनी में देखा : यौवन की प्रत्यक्ष मुकुलित आभा - सब प्रकार से एक लायक़ नारी। कहा उन्होंने, “एक खास काम से आया हूँ । तुम क्यों आयी हो ?"
इस बार डिमि ने भिभिराम के साथ हुई बातों को ही दोहरा दिया। गोसाईं समझ गये कि इधर क्या काम चल रहा है। रूपनारायण और धनपुर गारो गाँव में ही हैं। घूमने के बहाने वे पास-पड़ोस के स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं । माणिक बॅरा और जयराम मेधि नेपाली बस्ती में हैं, पर यह अन्दाज़ करना
for है कि वे क्या कर रहे हैं । डिमि नेपाली बस्ती की बातें नहीं जानती है । सबसे अच्छी बात यह है कि डिभि के गाँव का भी कोई व्यक्ति यह नहीं जानता कि वस्तुतः ये लोग यहाँ क्यों आये हैं । गाँववाले बँगला उत्सव में मग्न हैं । पूछा उन्होंने :
"वे हैं कहाँ ? यहाँ आये क्यों नहीं ?"
डिमि ने उत्तर दिया, "दोनों पास ही कहीं बात-चीत कर रहे हैं। आने ही वाले हैं।"
"मैं आगे बढ़कर देखता हूँ । इनके देर करने से ठीक नहीं होगा ।" कहता हुआ भिभिराम चलने को तत्पर हुआ ।
गोसाईं ने अनुमोदन किया, "जाओ, देखकर जल्दी आओ। थोड़ी चाय - वाय
88 / मृत्युंजय