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"क्या अपने से बड़ों के साथ ऐसे ही बात की जाती है ? चुप रहो । अपनी सुभद्रा के आने पर ही ऐसा हंसी-मजाक करना।" और वह बड़े प्रेम से आहिना कोंवर को चोंगा थमाकर अन्दर लौट गयी।
भिभिराम भावी विपत्ति से शंकित हो उठा। यदि सुभद्रा की बात धनपुर को अभी कह दी जाये तो सर्वनाश हो जायेगा। उसकी हिम्मत टूट जायेगी। इस बार उसने ही बनावटी धमकी दी: ___ "तुम बहुत ही बढ़-चढ़ गये हो । कोंवर को वैसा कहना ठीक नहीं । क्षमा माँगो।"
आहिना भी बोल उठा :
"तुम्हारी खुराफ़ात बढ़ गयी है, हे कृष्ण। बड़े अत्याचारी हो गये हो । तूने उस उल्लू को तो मार दिया, पर जानते हो, हे कृष्ण, वह कौन था? तुम्हारी..." ___इस बार भिभिराम की आशंका दुगुनी बढ़ गयी। वह आहिना को हाथ पकड़ दूसरी ओर ले गया और कान में फुसफुसाते हुए बोला : ___- "क्या गोसाईंजी की चेतावनी भूल गये ? उससे कह देने पर सर्वनाश हो जायेगा । जीवित रहकर भी वह मरा हुआ बन जायेगा। उसका तो बचपन से -स्वभाव ही ऐसा है । आप तो बुजुर्ग हैं, तनिक धैर्य से काम लीजिये।" ____ आहिना ने बात मान ली । “अच्छा-अच्छा ! नहीं कहूंगा । हाँ, कई रसोइयों के होने पर सारा भोजन ही गुड़-गोबर हो जाता है।"
भिभिराम और आहिना की फुसफुसाहट की ओर धनपुर के कान खड़े हो गये । वह सोचने लगा, 'ये किसके बारे में बातें कर रहे हैं ? मेरे बारे में ही
क्या?'
चाय पी चुकने पर धनपुर ने भिभिराम से पूछा : "आप लोग क्या गुप-चुप कर रहे हैं ?"
"हम लोग गुपचुप नहीं कर रहे हैं, धनपुर। मैं तुम्हारा पराया नहीं हूँ। ये ठहरे बुजुर्ग, अब इन्हें और मत चिढ़ाना। मैं इनसे भी यही कह रहा हूँ। तुम माफ़ी माँगो। मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ न ?” ___इस उत्तर से धनपुर यद्यपि संतुष्ट नहीं हुआ, फिर भी भिभिराम के आग्रह से उसने आहिना कोंवर से खेद प्रकट करते हुए कहा : "इन बातों को मज़ाक़ भर समझेंगे, कोंवर ! जीवन में कभी आनन्द की दुन्दुभि बजती है तो कभी क्रोध की। दोनों एक ही दुन्दुभि के स्वर हैं। मुझे नहीं लगता कि दोनों भिन्न-भिन्न हैं।"
धनपुर ने चाय पीकर चोंगा एक ओर लुढ़का दिया, फिर ख़ामोशी तोड़ता हुआ बोला : __ "गोसाईजी कहाँ गये ? अभी ही हमें यहाँ से चलना होगा । मेरी घड़ी में सात बज रहे हैं । रूपनारायण, तुम्हारा क्या विचार है ?" :96 / मृत्युंजय