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"यहाँ क्यों आयी हो डिमि ? बोलो !" सतर्कता के लिए भिभिराम ने काठी में पड़े दाव की मूठ पर अपना हाथ रख लिया ।
fsfa फिर हंसने लगी । बोली, “क्या मैं पनवाड़ी का पान हूँ जिसे एक ही बार में काट दोगे ? या मैं बलि का सुअर हूँ जिसकी तुम बलि दे दोगे ? दाव पर से हाथ हटा लो, भिभि भैया । मैं यहाँ एक काम से आयी हूँ ।"
"क्या काम है ?" भिभिराम ने चाँदनी में उसके गोल-मटोल चेहरे पर नज़र जमाये हुए ही पूछा, "और कौन आया है ?"
" धनपुर ।" डिमि हँसने लगी । “अब तो मान गये न कि यह सारी जगह मेरी आँखों में है । धनपुर ने ही मुझे यहाँ तक लिवा लाने को कहा और मैं उसे साथ लेकर यहाँ आयी हूँ ।"
दाव की मूठ पर से भिभिराम ने अपना हाथ हटा लिया । फिर पूछा, "वह स्वयं क्यों नहीं आया ?"
"वह धीरे-धीरे आयेगा । यहीं, रास्ते के पास ही है। उसके साथ रूपनारायण भी आया है ।" डिमि ने कहा ।
भिभिराम ने जेब से एक बीड़ी निकाली । डिमि ने कहा, "बीड़ी क्या पीते हो ? मेरे पास सनलाइट सिगरेट है । पिओगे ?" और अपनी झोली से एक सिगरेट निकाल उसके आगे बढ़ा दी ।
"यह तो क़ीमती सिगरेट है ! कहाँ से लायों ? " कहते हुए भिभिराम ने बीड़ी अपनी जेब में रख ली। वह कभी अभाव में काम आयेगी । सनलाइट सिगरेट मुँह में लगाते ही डिमि ने उसे निस्संकोच भाव से जला दिया और कहा :
"हमारे नोकमा, गाँव के मुखिया, के यहाँ 'बँगला' उत्सव हो रहा है । आज छत्छत् छोवा हुआ है । वही बहुत सारी सिगरेटें लाया है ।"
भिभि ने टोका :
“मिकिर लोगों का कोई बँगला उत्सव तो है नहीं । तुम लोगों का तो मैंने केर उत्सव देखा है । यह बँगला क्या है ?"
डिमि हँसती हुई बोली, "मेरी शादी गारो के साथ हुई है । लगता है, जैसे तुम जानते ही नहीं ? बहाने क्यों बना रहे हो ? यह उत्सव भी वही है । हमारे यहाँ आर्णाम पारोवे की पूजा होती है और यहाँ छालजङ की । छालजङ माने चिकलो - चन्दा ।"
"ओ, अच्छा-अच्छा । लेकिन तुम गारो-पूजा छोड़कर क्यों आयीं ।"
"नोक्मा को कहकर आयी हूँ," डिमि से उत्तर मिला ।
हठात् चन्द्रमा को देखकर वह लजा गयी । बड़ा दुष्ट है यह चाँद । इसके सामने कोई बच नहीं सकता । आकाश से यह उसके वक्षदेश के गुप्त भाग को घूर रहा था ।
मृत्युंजय / 85