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सतारा, मेदिनीपुर : जिधर देखो यही हाल है । तब भी तो हमारी पंचायती सरकार स्थिर नहीं रह सकी है ।"
भिभिराम ने कहा :
"उन बातों की चर्चा करने से क्या लाभ ? 'करेंगे या मरेंगे' हम इसी भावना से आगे बढ़ेंगे। सरूपथार की रेल दुर्घटना के कारण कहीं कुशल कोंवर को फाँसी की सजा ही न मिले और...।” कहते हुए भिभिराम का स्वर खो रहा ।
गोसाईं बोले :
"सुना है बढ़मपुर में भी तीन जन मारे गये !"
भिभिराम ने विस्तार से बताया :
"बड़े भोज के दिन मैं वहीं था। भोज के बाद हम सब काम में जुटने को थे । अकस्मात् कई मिलिटरीवाले आ निकले और लगे दागने गोली । भोगेश्वरी फुकननी आगे थी । 'महात्मा गांधी की जय' कहती हुई लुढ़क गयी । साठ वर्षीया वृद्धा । सब उसे दादी कहते। उसे गिरते देख ठगी सूत आगे बढ़ा। फुकननी के हाथ के तिरंगे को उसने संभाल लिया । अगले ही क्षण वह भी गोली का शिकार बना । उसके बाद लक्ष्मी हजारिका दौड़ते हुए पहुँचा । वह भी मारा गया । लाशें सुरक्षित स्थान पर लाकर रखने के बाद देखा गया कि लखी में अभी प्राण शेष थे । उसी अवस्था में उन्होंने जेब में बचे हुए छह पैसे निकाले और स्वराज्य-निधि को अर्पित कर दिये। उस दृश्य को देखने के बाद जीवन के प्रति मेरा सारा मोह ही जाता रहा। दो दिन आगे या पीछे मरना सबको है ही ।"
महदानन्द गोसाईं स्थिर दृष्टि से भिभिराम के मुँह को देखते हुए कुछ देर चुप रहे। बाद में बोले :
"तुमने अभी घर-संसार बसाया नहीं है क्या ?”
"सब हैं; पर अब सब का भार भगवान पर सौंप आया हूँ ।"
गोसाईं के स्वर में चिन्ता घुल आयी :
"भगवान तुम्हारे परिवार को सकुशल रखें ।"
उसके बाद एक सघन उच्छ्वास उनके कण्ठ से निकली । और सामने शून्य में देखते हुए वे अपने में खो रहे । तीन एक मिनट बाद हठात् भिभिराम ने पूछा : "कोई और बात क्या
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"नहीं; पर घर में ये सब मैंने भी बताया नहीं है । सोच रहा हूँ क्या बताऊँ, कैसे !"
"आपको तो शायद विवाह किये अभी बहुत दिन नहीं हुए ?"
"हाँ, अच्छा छोड़ो। अपने साथ थोड़ी खाद्य सामग्री और बरतन आदि भी तो ले जाने होंगे । कमारकुचि में कई और जन भी साथ हो जायेंगे । गोसाईंजी ने चिट्ठी में लिखा भी है । मधु शिलडुबी से बन्दुक़ लेकर कल लौट आयेगा । आते
40 / मृत्युंजय
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