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थोड़ी देर रुकने के बाद वह पुनः बोला, "हाँ, समझ गया। हे कृष्ण, यह उसी ठेकेदार का काम है । मसाले बनानेवाला, दुश्मन कहीं का, हे कृष्ण !"
गोसाई ने कुछ नहीं कहा । वे सोचने लगे : आजकल गाँव से गाय-बैल-भैस सबको इसी तरह हाँककर अन्यत्र बेच देना आम बात हो गयी है। इस गाय का बछड़ा या तो कहीं बिछुड़ गया है या फिर उसे बाघ खा गया है। किन्तु वे दो गायें किसकी हैं ? आते समय उन्हें अपनी गौशाला एकदम सनी दिखी थी। सम्भवतः इस रास्ते से हाँककर लाते समय इसने इस आश्रमवाले घर को पहचान लिया, तभी जंगल से बहटकर यह इधर चली आयी है। निश्चय ही यह घटना कल घटी होगी। परसों रात से ही मधु गाय को बांध नहीं सका।
हाँकलानेवाले को भी शायद यह जंगल में नहीं मिली। तभी से यह यहीं छूट गयी । यह गाय गोसाइन की आँखों का तारा है, बिलकुल सन्दूक की ही तरह । इसका एक बछड़ा अभी एक माह का भी तो नहीं हुआ था। गोसाई ने अनुमान लगा लिया कि गायें बचीं नहीं । सम्भवतः बल भी बाघ का आहार बन चुके हैं।
यह समय सोच-विचार का नहीं था। वे गाय को तुरन्त आश्रम के बग़लवाले गौशाला में हांक ले गये और उसे भीतर कर बाहर से बेड़े को बन्द करके लौट आये । तब तक चाँदनी फैल चुकी थी। ___ आहिना गठरी उठाकर चलने को तत्पर हुआ। भिभिराम तब भी पहुँचा नहीं था । गोसाईंजी ने अगहनी पूनम के चाँद की ओर देखा । उन्हें लगा जैसे उनके अन्तस् में बहती नदी के दोनों छोर कटते जा रहे हैं और उसका सोता किसी विशाल गह्लर में प्रविष्ट होता जा रहा है । औरों के लिए उस चित्र को देखना सम्भव नहीं था, लेकिन आँखों से आंसू झरझराती इस काली गाय की नाई ही गोसाइन का आश्रुपूर्ण मुखड़ा और पूजा में बलि चढ़ानेवाले के ललाट पर चमकते हुए लाल टीके के समान पूर्णिमा के इस चांद को देखते ही उस नदी का चित्र उनके समक्ष प्रत्यक्ष हो उठा था।
तभी कहीं से उड़ता हुआ एक पक्षी कार्तिक में जलाये जानेवाले आकाशदीप पर विश्राम करने की इच्छा से आ बैठा। किन्तु बाँस के हिल उठने से वहाँ से भी उड़कर वह पास ही आश्रम के छप्पर पर जा बैठा।
"यह उल्लू है, हे कृष्ण ! इसे पहचानते हैं न गोसाईंजी ?" उस पक्षी की ओर संकेत करते हुए आहिना ने पूछा।
गोसाई ने सिर उठाकर देखा । आहिना धा-धाकर उसे भगाने की कोशिश करने लगा। तभी हाथ में मशाल लिये भिभिराम आ पहुँचा। किसी से कुछ न कह वह सीधे अन्दर चला गया। थोड़ी देर बाद कन्धे पर पुरानी गठरी और हाथ में मशाल सँभाले हुए बाहर आया। आते ही उसने आहिना से कहा :
"आहिना भैया! एक मशाल आप भी ले आइये।" फिर गोसाई को लक्ष्य
मृत्युंजय /79