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रहे हो ! राम-राम ! ये बातें पहले सुनी होतीं तो तुम्हारी छाया से भी दूर रहता । अब तो दोनों एक ही काम से निकले हैं : साथ चलना ही होगा ।"
काम का नाम आते ही धनपुर को अपनी भूल का बोध हुआ । इतना ही कहा उसने :
"मेरी बातों से आपको दुःख पहुँचा । मैं चुप रहूँगा । सबकी अपनी-अपनी समझ होती है । जाने दीजिये । सामने की तरफ़ उँगली उठाता हुआ बोला : "महाजन का घर वही है क्या ?"
उधर एक लम्बा-चौड़ा फूस का घर था । भीतर पेट्रोमैक्स जल रहा था । माझी ने कहा :
"हाँ, वही है घर । महाजन शायद जगे हुए हैं। आप इन्हें पकड़े रहिये, मैं उन्हें ख़बर करता हूँ । क्या नाम बताया था ?"
" मैंने ? मधु केवट । कहना गोसाईंजी ने भेजा है ।"
माझी अन्दर चला गया ।
"कैसा जी है अब ?"
मधु ने बेपरवाही से उत्तर दिया :
" चिन्ता की बात नहीं । काम रुकने नहीं पायेगा ।" आश्वस्त होने के लिए उसने पूछा : "तुम्हारे और साथी भी तो तुम्हारी तरह पक्के जी के हैं न ?" " एकदम | और आपके साथी ?"
मधु ने अपनी कमर को सहलाते हुए बताया :
"हमारे साथी तो माय के चुने हुए लोगों में से हैं । दधि एक ज्योतिषी के बेटे हैं । कहीं मास्टर हैं। बड़े ही सत्यनिष्ठ । साहस की नहीं जानता । दुबलीपतली काया है : मन भी उसका तितली के पंख जैसा । आहिना कोंवर सम्मान्य व्यक्ति, किन्तु अफ़ीमची । तरुण फुकन भी उनकी लत नहीं छुड़ा पाये । इसी अंचल के होने से तमाम रास्तों से परिचित हैं। बड़े काम के आदमी हैं । जयराम पहले ओझा थे । इसीलिए टोना-टोटकों में उलझा करते हैं। यों बहुत तेज़ हैं । गोसाईजी के दाहिने हाथ । राजाजी से तुम्हारी भेंट हुई नहीं। शायद हो भी न । देखते ही बिल्कुल राजकुमार लगते हैं । कान्तिमान चेहरा, प्रभावी व्यक्तित्व । मगर घुन्ने । मन के भी कठोर । हाँ, गोसाईंजी की बात मानते हैं । "
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धनपुर ने आशंका व्यक्त की :
"इतने सब ? ऐसे कामों में दो-चार निपुण और साहसी सहयोगी ही रहें तो अच्छा । पहरेदारों की आँख से बचने में भी सुविधा रहती । "
मधु ने कहा :
"इन सबका चुनाव गोसाईंजी ने किया है। तुम निश्चिन्त रहो । मायङ तो ऐसे भी गढ़ जैसा है । एक ओर ब्रह्मपुत्र, और दूसरी ओर पहाड़ और बीच में ये
मृत्युंजय / 53