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चीज़ नहीं होती कि बलि का बकरा समझ लिया जाये। भला बताइये तो कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को क्या हो गया था ? ऐसा नहीं कि भय के कारण कातर हो उठा था । उसे धर्माधर्म के विचार ने झिझोड़कर विषाद में डाला था । जीवहत्या महापाप है, जानते हो !”
"तो आप मछली क्यों मारते हैं ? मछली मारना पाप नहीं ?”
मधु निरुत्तर ! सोच में पड़ा। क्या मनुष्य और मछली के प्राण एक समान नहीं ?
धनपुर ने आगे कहा :
" देखा नहीं, गांधीजी के ही स्वयंसेवकों का क्या हाल हुआ ?"
मधु के मुंह में बोल न था । धनपुर देख नहीं सका, पर उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं ।
धनपुर कहता गया :
"पता है माणिक भगत और भिभिराम जैसे लोगों ने गुरिल्ला युद्ध की क्यों सोची ? इसलिए कि दूसरा चारा नहीं है । विदेशियों को भारत के बाहर खदेड़ना ही होगा ।"
मधु ने इस बार भी कोई उत्तर नहीं दिया । धनपुर भी इसलिए चुप हो रहा । मधु की तबीयत वैसे भी ठीक नहीं थी । लेकिन उसकी चिन्ना न करके वह अपने तात्कालिक कर्तब्य और दायित्व के बारे में ही सोच रहा था ।
शहतूत वाला वह जंगल घना नहीं था । बीच-बीच में किसी ने रेशम का कीड़ा भी पाल रखा था। आस-पास कोई पहरेदार होने का संकेत नहीं मिला । दोनों जहाँ आकर खड़े हो गये थे, वहाँ साफ़-सुथरी जगह थी। केंचुए या झींगुर तक नहीं थे ।
जंगल से थोड़ा ही आगे ब्रह्मपुत्र से निकला आता एक सोता था । इसके पार ही लयराम के गंगबरार वाले खेत शुरू हो जाते थे । इधर कई बरस से इन खेतों को ब्रह्मपुत्र की बाढ़ ने भी मुक्त रखा था। एक-एक खेत लहलहा रहा था। इस बार फ़सल वैसे भी अच्छी हुई थी। ख़रीफ़ की फ़सल तो इस ज़मीन पर चाहे जितनी उगायी जा सकती थी ।
तत्काल तो मधु और धनपुर के सामने प्रश्न यह था कि सामने के सोते को कैसे पार किया जाये । नाव मिले न मिले। रात में यों भी नहीं चला करतीं । प्रत्यक्ष था कि तैरकर ही पार करना था । धनपुर के कन्धे पर एक बैग था । उसने सोचा कि खड़ी तैराई करके पार हो सके तो बैग भीगने से बच जायेगा ।
उनका अनुमान था कि किनारे खड़े सेमल के पेड़ के नीचे से धार को पार करना आसान होगा । पानी वहाँ ज़रूर कम गहरा होना चाहिए।
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ब्रह्मपुत्र की ओर से आती हुई हवा धनपुर की तरुण देह की ऊष्मा को छूती
मृत्युंजय | 45