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"भगत, उन पर अब चुल्लू भर पानी छिड़क दो तो अच्छा। अब तो देश में मतदान होगा। मतदान द्वारा मेम्बर चुनकर शिलड्. भेजना होगा। मेम्बर ही अपनों में से मन्त्री चुनेंगे, और ये मन्त्री ही देश चलायेंगे।"
"हे कृष्ण-कृष्ण, इस भूत की बातें सुनने से क्या लाभ !" आहिना बड़बड़ाया। धनपुर कहने लगा :
"ये तुम्हारे सीमावर्ती राजाओं के बच्चे अब भी राज्य की आशा नहीं छोड़ना चाहते। लेकिन समझ रखो यह सब अब चलेगा नहीं।"
भिभिराम बीच में पड़ा : ___ "झूठमूठ का विवाद मत बढ़ाओ धनपुर । जब से आये हो तब से बराबर ही खरोंच रहे हो। और आहिना भइया, इतना तुम भी जान लो कि अब वोट तो होगा ही। यही युगधर्म है। द्वादश स्कन्ध में वसुमती ने राजाओं के बारे में क्या कहा है, स्मरण है न ?
अन्य सब जितने राजे हैं, दैत्य तक भी हो महासूर महाबली और बुद्धिमन्त । हाथों काल के सभी हो चुके हैं चूर्ण
धरती पर रह गयीं अब मात्र कहानियाँ ।" अन्तिम ग्रास समाप्त करते हुए जयराम ने भी हाँ में हाँ मिलायी : "ठीक ही कहते हो भाई। रह गयीं अब मात्र कहानियाँ ।" माणिक बॅरा भी खाना शेष कर चुका था। बोला : "आगे की कड़ी तो और भी भावपूर्ण है :
अन्त समय आया सबकी हुई विसंगति । छोड़ मुझे वे सब कहाँ गये नृपति ॥ उत्पन्न सभी मुझसे मुझ में होते लीन ।
बंद-बंद जैसे होता जल विलीन ॥" भोजन को भूल आहिना कोंवर अवाक हुआ पद सुन रहा था। अन्य सभी जन अपना-अपना शेष कर चुके थे। सब उठने की तैयारी कर रहे थे। धनपुर तो नियम भंगकर अपना पत्तल उठाये हुए पीछे की ओर जा भी चुका था। मधु ने कहा :
"कोंवर ने तो खाया ही नहीं। खा लीजिये न जल्दी। रात काफ़ी बीत चुकी है। कई और काम पड़े हैं।"
आहिना कोंवर जल्दी-जल्दी खाने लगा। भिभिराम ने कहा : "मधु, गोसाईंजी भोजन कर चुके ?" "नहीं, अभी तो करने बैठे ही हैं।"
मृत्युंजय / 37