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जो वार्तालाप हुआ है वह काफी ममस्पर्शी बना दिया गया है और इससे म. महावीर की महत्ता भी खूब चमकी है।
४७-६२ वां प्रकरण भी शास्त्राधार से है। केशी गौतम संवाद के प्रश्न भी चे ही हैं जो शास्त्रों में उल्लिखित है । फिर भी उनकी रचना ऐसी कर दी गई है कि साधारण से दिखाई देनेवाले प्रश्न महत्वपूर्ण वनगये हैं और उनका ऐसा सिलसिला बंधगया है कि वे एक ही सांकल की कड़ियां से मालूम होने लगे हैं।
४८-६३ चे प्रकरण से अन्त तक के प्रकरण शास्त्राधार से हैं । भाषा आदि में जो विशेषता है वही है। ५- दैनन्दिनी की तिथियाँ- .
यह अन्तस्तल महावीर की दैनन्दिनी (डायरी) के रूप में लिखा गया है । और उसमें तिथि या तारीख दीगई है।
आजकल संसार में सव से ज्यादा प्रचलित ईस्वी सन् है परन्तु वह दो हजार से भी कम है इसलिये बहुत पुरानी घटनाओं के उल्लेख में उससे काम नहीं चल सकता । ऐतिहासिक लोग पुरानी घटनाओं को बी. सी. ( ईस्वी सन् पूर्व ) के रूप में उल्लिखित करते हैं। पांच सा वो. सी. (ईसा से पांच सौ वर्ष पूर्व) आदि । पर इसप्रकार का उल्लेख डायरी के लिये बिलकुल वेकार है, असंगत है.। इसके लिये तो इतिहास संवत ही सत्र से अधिक अनुकूल हैं । इतिहास संवत् ईस्वीसन से दस हजार वर्ष अधिक है। इसलिये आज १९५३ वर्ष तक की पुरानी घटनाओं का उल्लेख उसके द्वारा सरलता से किया जासकता है । अभी सन् १९५३ है इसका अर्थ यह हुथा कि इतिहास संवत् १९९५३ , है । इसप्रकार दस हजार अधिक है । इतिहास संवत का पहिला एक का अंक दवाने से ईस्वी सन निकल आता है।