________________
२८ ]
यह तो बताते हैं कि उनकी पुत्री और जमाई ने दीक्षा ली पर यह नहीं बताते कि पत्नी का क्या हुआ । म बुद्ध बुद्धत्व प्राप्ति के बाद जब जन्मभूमि पधारे तब पत्नी से मिलने का दृश्य अत्यन्त करुण हैं । 'म. महावीर के जीवन में वैसा दृश्य न फक्ता. और सम्भव यही है कि तब तक उनकी पत्नी का देहांत होगया हो. इसलिये उनकी पुत्री के मुँह से यशोदा देवी के देहान्त के समा चार कहलाये गये हैं इस घटना में करुण रस का खुब परि पाक हुआ है । बात बिलकुल स्वाभाविक, पूर्ण सम्भव और मर्म स्पर्शी बन गई है । ज्ञातिमोह के विषय में जो विचार प्रगट किये
भी मौलिक हैं और म. महावीर की महत्ता बतलाते हैं ।
इसी प्रकरण में गर्भापहरणवाली घटना का सम्भव और स्वाभाविक रूप में उल्लेख कर दिया गया है। जैनशास्त्री में जिसप्रकार इस घटना का उल्लेख है वह बिलकुल अविश्वसनीय और कुछ निंध भी हैं । अन्तस्तल में वह विलकुल स्वाभाविक सम्भव वनगई है और निद्यता दूर होगई है ।
४० - ७५ वें प्रकरण से लेकर ७२ वे प्रकरण तक का वर्णन शास्त्रोक्त है । लेखन में ही कुछ विशेषता आई है ।
४१ - ८० चे प्रकरण की घटना शास्त्रोक है । इसमें स. महावीर ने ५ वे स्वर्ग, ब्रह्मलोक के आगे भी स्वर्ग होने की बात कही है और इससे लोकविख्यात पागल परिव्राजक ने शिव्यता स्वीकार करली है । सूलग्रन्थों में ऐसी कोई युक्ति नहीं दी गई है जिससे आगे के स्वर्ग सिद्ध होसकें और उससे प्रभावित होकर एक विख्यात धर्मगुरु शिष्य वनजाये । परन्तु अन्तस्तल में यह विवेचन मालिक है । समता और सुख का सम्बन्ध बताकर यह विवेचन काफी तर्कपूर्ण मौलिक और असाधारण बनगया है ।
४२ - ८१ वें प्रकरण की घटना भी शास्त्रोक्त है । और इससे इस बात पर पूरा प्रकाश पड़ता है कि अलोकिक ज्ञान