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अलिप्तता और अनासक्ति का भाव-बोध
कमल को देखा आपने? कमल हमारा बड़ा पुराना प्रतीक है। महावीर बात करते, कृष्ण बात करते, बुद्ध बात करते, उनकी बातों में कितने ही फर्क पड़ते हों; लेकिन कमल जरूर आ जाता है।
इस मुल्क में तीन बड़े धर्म पैदा हुए, हिन्दू, जैन, बौद्ध, और फिर सैकड़ों महत्वपूर्ण संप्रदाय पैदा हुए। लेकिन अब तक एक सदगुरु ऐसा नहीं हुआ जो कमल को भूल गया हो। कमल की बात करनी ही पड़ती है। कुछ मामला है, कुछ एक सत्य भीतर सब धर्मों की आवाज के भीतर दौड़ता हुआ एक स्वर है— चाहे कोई भी हो सिद्धांत । अलिप्तता मार्ग है, इसलिए कमल की बात आ जाती है।
भारत के बाहर जिन मुल्कों में कमल नहीं होता, उन मुल्कों के सदगुरुओं को बड़ी कठिनाई रही है। कोई उदाहरण नहीं है उनके पास संन्यासी का, कि संन्यासी का क्या अर्थ है ?
संन्यासी का अर्थ है— कमलवत । कमल के पत्ते पर बूंद गिरती है पानी की, पड़ी रहती है, मोती की तरह चमकती है । जैसी पानी में भी कभी नहीं चमकी थी, वैसी कमल के पत्ते पर चमकती है। मोती हो जाती है। जब सूरज की किरण पड़ती, तो कोई मोती भी क्या; फीका हो जाये, वैसी कमल के पत्ते पर बूंद चमकती है। लेकिन पत्ते को कहीं छूती नहीं, पत्ता अलिप्त ही बना रहता है। ऐसी चमकदार बूंद, ऐसा मोती जैसा अस्तित्व उसका, और पत्ता अलिप्त बना रहता है। भागता भी नहीं छोड़कर पानी पानी में ही रहता । पानी में ही उठता है, पानी के ही ऊपर जाता है और कभी छूता नहीं, अछूता बना रहता है, कुआंरा बना रहता है
एक यह अलिप्तता का जो भाव है, यह संसार के बीच संन्यास का अर्थ है । इसलिए कमल प्रतीक हो गया। पर कमल एक और है। मिट्टी से पैदा होता है, गंदे कीचड़ से पैदा होता है। ऊपर उठ जाता है और कमल हो जाता है। कमल में और कीचड़ में कितना फासला है ! जितना फासला हो सकता है दो चीजों में। कहां कमल का निर्दोष अस्तित्व ! कहां कमल का सौदर्य! और कहां कीचड़ ! पर कीचड़ से ही कमल निर्मित होता है ।
इस कारण से भी कमल की बड़ी मीठी चर्चा जारी रही सदियों सदियों तक। आदमी संसार में पैदा होता है कीचड़ में, पर कमल हो सकता है। कीचड़ में ही पैदा होना पड़ता है। चाहे महावीर हों, चाहे बुद्ध हों, कीचड़ में ही पैदा होते हैं। चाहे आप हों, चाहे कोई हो - सभी को कीचड़ में पैदा होना पड़ता है। संसार कीचड़ है। थोड़े से लोग इस कीचड़ के पार जाते हैं और कमल हो जाते हैं। वे ही लोग इस कीचड़ के पार जाते हैं जो अलिप्तता को साध लेते हैं ।
अलिप्तता ही कीचड़ के पार जाने की पगडण्डी है। उससे ही वे दूर हो पाते हैं। कीचड़ नीचे रह जाती है, कमल ऊपर आ जाता है। जिस दिन कमल ऊपर आ जाता है, कमल को देखकर कीचड़ की याद भी नहीं आती। कभी कमल आपको दिखायी पड़े, कीचड़ की याद आती है? वह याद भी नहीं आती। इसलिए बड़ी अदभुत घटनाएं घटीं।
जीसस के माननेवाले कहते हैं कि जीसस सामान्य संभोग से पैदा नहीं हुए, कुआंरी मां से पैदा हुए हैं। यह बात बड़ी मीठी है और बड़ी गहरी है। असल में जीसस को देखकर ऐसा नहीं मालूम पड़ता कि दो व्यक्तियों की कामवासना से पैदा हुए हों। कमल को देखकर कहां कीचड़ का खयाल आता है। जीसस को देखकर खयाल नहीं आता कि दो व्यक्ति जानवरों की तरह कामवासना में गुंथ गये हों, और उनके शरीर की बेचैनी, और उनके शरीर की अस्त-व्यस्तता, अराजकता, पशुता और उनके शरीर की वासना की दुर्गन्ध की कीचड़ से जीसस पैदा हुए।
कमल को देखकर कीचड़ का खयाल ही भूल जाता है। और अगर हमें पता ही न हो कि कीचड़ से कमल पैदा होता है, और जिस आदमी ने कभी कीचड़ न देखी हो और कमल ही देखा हो, वह कहेगा यह असंभव है कि यह कमल और कीचड़ से पैदा हो जाये ।
इसलिए जीसस को देखकर अगर लोगों को लगा हो कि ऐसा व्यक्ति कुंआरी मां से ही पैदा हो सकता है, तो वह लगना वैसा ही है,
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