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यद्यपि सकलकीति का महावीर पुराण हमारे सामने नहीं है किन्तु हमें स्मरण पड़ता है कि उन्होंने भी इस प्रसंग में इस शब्द का प्रयोग किया है । अस्तु,
हमारा कहने का अभिप्राय यह है कि भगवान् महावीर के जीवन के सम्बन्ध में जो कुछ भी लिखा या कहा जाय प्रामाणिकता से लिखा जाय, किसी भावावेश में होकर नहीं क्योंकि जो कुछ आज लिखा जायगा कल वह ही प्रमाणकोटि में प्रस्तुत किया जायगा। वैसे महावीर की महत्ता उनकी गाईस्थिक जीवनचर्या से सम्बन्धित घटन के कारण है भी नहीं, उनकी महत्ता तो उनके दर्शन, ज्ञान, चारित्र आदि गुणों के कारण है जिसे अधिक से अधिक प्रचारित किया जाना चाहिये। शायद इसी कारण उनके सांसरिक जीवन की घटनाओं को बहुत कम वर्णन हमें देखने को मिलता है क्योंकि महावीर तो जन्म से सांसारिक थे ही कहां? वे तो जल में भिन्न कमल के समान प्रारम्भ से ही संसार से विमुख थे। निश्चय ही इस वर्ष कई अच्छे ही नहीं बहुत अच्छे प्रकाशन भी सामने आये हैं। कई अच्छे कार्य भी हुए हैं। वे सब प्रशंसनीय हैं । 'सब धान बाईस पसेरी' वाली उक्ति हम चरितार्थ नहीं करना चाहते । हम अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहना चाहते हैं।
इस वर्ष स्मारिका में प्रकाशनार्थ हमें अप्रत्याशित रूप से अधिक रचनाएं प्राप्त हुई । प्रयत्न करके भी हम उन्हें नहीं दे पाये । साथ ही कई रचनाएं अधिक लम्बी भी प्राप्त हुई जिन्हें यदि हम ज्यों का त्यों देते तो सारी स्मारिका में ७-८ से अधिक रचनाएं शायद ही जा पातीं अतः हमें अपनी कैंची का प्रयोग न चाहते हुए भी करना पड़ा। संभव है इस अप्रिय कार्य में रचना के कुछ महत्वपूर्ण अंश पृयक हो गये हों अथवा निबंधों में कुछ असम्बद्धता उत्पन्न हो गई हो। आशा है हमारी स्थिति का भान क र लेखकगरण हमें इसके लिए क्षमा करेंगे। साथ ही नहीं लेखकों से भी हम क्षमाप्रार्थी हैं जिनकी रचनाएं इस स्मारिका में जा नहीं पा रही हैं। प्रतिवर्ष स्मारिका का कलवेर बढ़ जाता है और अधिक से अधिक रचनाओं का उपयोग करने के लोभ में हम हमारे साथियों की भी नहीं सुनते । यह वर्ष भी इसका अपवाद नहीं है। इसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं ।
सम्पादन में हुई त्रुटियों, भूलों एवं जाने अनजाने किये गये अपराधों के लिए क्षमायाचनापूर्वक हम हमारे साथियों, सहयोगियों तथा लेखकों से प्राप्त स्नेह और सहयोग के लिए हृदय के अन्तर्तम से कृतज्ञता-ज्ञापन एवं धन्यवाद अर्पण करते हैं।
-भंवरलाल पोल्याका
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