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श्रीवीतरागाय नमः जैनधर्मपर व्याख्यान.
महाशयगण ! मैं आज मध्याह्नके समय आपके सामने एक ऐसे धर्मपर __ व्याख्यान देनेकेवास्ते खड़ा हुआ हूं जिसका उपदेश इस भारतवर्षमें प्राचीनकालमें
"क्षत्रियोंने किया था. वह धर्म जिसका उपदेश न तो ब्राह्मणोंने किया न वैश्योंने और नशद्रोंने बल्कि मैं कहता हूं कि क्षत्रियोनें । मैं आपके सन्मुख ऐसे मतपर बोलनेके मर्य खड़ा हुआ हूं जिसका उपदेश ऐसे क्षत्रियोंने नहीं किया जो जीवोंका शिकार करते हैं जो यज्ञमें जीवोंकी हिंसा करते हैं अथवा जो जीवोंका भक्षण करते हैं बल्कि जिसका उपदेश ऐसे क्षत्रियोंने किया था कि जिन्होंने जगतभरमें यह ढंडारा पिटवा दिया था कि,
अहिंसा परमो धर्मःअर्थात-किसी जीवका बध मत करो, किसी जीवको दुःख मत दो, यही परम धर्म है. और जिन्होंने इसमकार कहा है, बतलाया है, प्रगट कियाहै, और समझाया है कि
" जैसा दुःख हमको होता है जब कोई हमको धक्का देता है, पीटता है, धमकाता है, अधिक मार देता है, जलाता है, दुःख देता है वा जीवरहित करता है. और जैसी पीड़ा और कष्टी हमको मृत्युसे लेकर एक रोम तकके उखाड़नेमें होते हैं. निश्चय समझो कि इसीप्रकारसे ऐसी ही पीड़ा और दुःख सर्वप्रकारके जीवोंको भी होते हैं जब कि उनके साथ वैसा ही अनुचित व्यवहार किया जाय. जैसाकि हमारे साथ । इसकारण किसी जीवको मारना नहीं चाहिये, न उसके साथ सख्ती करनी चाहिये, न उसको गाली देनी चाहिये, न उसको कष्ट देना चाहिये और न उसका बध करना चाहिये."
महाशयो ! मैं इस मध्याह्नके समय आपके सन्मुख एक ऐसे धर्मके विषयों कहनेके अभिप्रायसे खड़ा हुभा हूं जिसकी कीर्तिको गूंगे जानवर गौ, भेड़, बकरी, मुगी, कबूतर और अन्य समस्त जीवधारी पशु और पक्षी आदि अपनी गूंगी जिद्वासे गाते हैं ! यही अकेला धर्म है, जो हमारो वर्षों से गूंगे जानवरोंका पक्ष ले रहा है. यही भकेला धर्म है जिसने बलिदान, भाहार, शिकार या किसी और मतलबके वास्ते चाहे वह कुछ ही क्यों न हो, जीवहिंसाको बुरा बतलाया है. और यही अकेला धर्म है जिसनेः