________________
। रतनपरोक्षक ।
२५ । वन रेशमी सोई मगावे । पंन्ना ऊपर ताहि घसावे ॥ ॥सुच्चा होए जिला अति होई। जिला दूरसझूटालख सोई ॥ ॥ त्रास दोष विन उत्तम मनो। टूटा होय घाट शुभ जानो ।। । टूटे रतन नारो कोई। विन पने शुभ और नहोई॥
॥ इति श्री पन्ना विशनम् ।। ॥ अथ नीलम विधानम् ॥
॥चौपई॥ । सलोन देसमें उतपत जानो। सान देस अरु ब्रह्मा मानो। ॥ गैली नाम स्थान इक होई। संगुलदीप हिमालय सोई॥ ॥ गवण गंगा उत्तपत जानो। नीलम वानसात विधमानौ। ॥ सैलांन देस की उत्तमजांनो । मौर कंट वत रंग पछानौ ॥ । अलसी फलवत मानों सोई । छोटा थान अधिक नहीं होई॥
सोम देश की नीलम जांनो । अतिपदा अति कृश्न पछानी।। ॥ नीलम देस हिमालय होई । सभप अति उत्तम है सौई ॥ ॥रंग ढंग शुभ संग विचारों । अतिदोअति श्रेष्ट सहारो॥ ॥ नीलम रंग एक सम नाहीं। एस कहागथ मत मांही॥ ॥ नील कमल बन रंग विचारो। अथवा नील वस्त्रमन धारौ॥ ॥ तलवार भ्रमर वत मानोसोई। मोर पुच्छ वत रंगत होई ॥ ॥ श्री कृश्न रंग शिव कंठ समारों । कंठ कोकिला रंगविचारौं । । अपरा जिता कृश्न पुष्य वत होई। सिंधुनी खत मानो सोई॥ ॥ कृश्न नीर वत वुद वुद जैस । नीलम रंग सु हावत तैसे। ॥ इंद्र धनुष जिस मध्य दिखावे। सोनीलम अति उत्तम भोवे॥ ॥ सौ गुण अधिक दूध के मांही। रंग दिखावे उत्तम तांही। ॥ चार रंग को छाया होई । विप्र वर्ण आदि लख सोई॥ ॥ कोला अभ्रक जहाँ दिखावे । नीलम खाँन तहाँ लखपावे॥ ॥ मानक अरु पुखराज विचारो। निलम का संजोग सम्हारो॥