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(१२) यशस्वीवाभिचन्द्रोथप्रसेनजित् ॥ मरूदेवीचनाभि श्वभरतेःकुलसत्तमः । अष्टमोमरूदेव्यांतुनाभेर्जात उरूक्रमः ॥ दर्शयनुवर्मवीराणांसुरासुरनमस्कृतः ॥ नीतित्रितयकर्तायोयुगादौप्रथमोजिनः ॥ __अर्थ-सर्व कुलोंका आदि कारण पहिला विमल बाहननामा और चक्षुष्मान ऐसे नामवाला और अभिचन्द्र और प्रसेन जित् मरुदेवी और नाभि नामवाला औरकुल में श्रेष्ट भरत और आठवां उपक्रम नामबाला मरुदेवी से नाभिका पुत्र ॥ यह उरूकाम बीरोंके मार्गको दिखलाता हुवा देवता और देयोंसे नमस्कारको पानवाला औरयुगके आदिमें तीन प्रकारकी नीतिको रचने वाला पहला जिन भगवान हुवा ॥
भावार्थ--यहां विमल वाहनादिक मनु कहहैं जैनमत में इनको कुलकर कहाहै और यहां युगके आदिमें जो अ वतार हुवाहै उस्को जिन अर्थात् जेन देवता लिखाहै इस से बिदितहे कि जैन धर्म सबसे आदिकाहै ।।
नग्न अवस्थाकी प्रशंसा इसप्रकार अन्य मतके ग्रन्थों में और भी की है।
प्रभासपुगण । भवस्य पश्चिमेभागे बामनेनतपःकृतम् । तेनैव तपसाकृष्टः शिवःप्रत्यक्षतांगतः॥पद्मासनसमासीनः श्याममर्तिर्दिगम्बरः । नेमिनाथ शिवाथैवं नामचक्रे