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है और अपने सौ १०० भाईयों में वडा है ॥ ऋषभदेव भरत को राज देकर महा दीक्षा को प्राप्त हुए अर्थात् तपस्वी होगये ॥
भावार्थ- जैन शास्त्रों में भी यह सव वर्णन इसही प्रकार है | इससे यह भी सिद्धहुवा कि जिस ऋषभ देव की महिमा हिन्दू भाईयों के ग्रन्थोंमें वर्णन की है जैनी भी उसही ऋषभदेवको पूजते हैं ।
श्री महाभारत ग्रन्थ |
युगेयुगे महापुण्यं दृश्यते द्वारिकापुरी | अवतीर्णो हरियंत्र प्रभासशशिभूषणाः । रेवताद्रेजिनोनेमिर्युगा दिबिंमलाचले | ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणं ॥
अर्थ-युगश्नें द्वारिका पुरी महा क्षेत्र है जिस में हरिका अवतार हुवा है जो प्रभास क्षेत्र में चन्द्रमा की तरह शोभित हैं | और गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ और कैलाश पर्वत पर आदिनाथ अर्थात् ऋषभदेव हुए हैं । यह क्षेत्र ऋषियों के आश्रम होने से मुक्ति मारग के कारण हैं ॥
भावार्थ - श्री नेमिनाथस्वामी भी जैनियों के तीर्थंकर हैं और श्रीष्टषभनाथ को आदिनाथ भी कहते हैं क्योंकि वह इस गुग आदि तीर्थकर हैं ॥
श्री नागपुराण ग्रन्थ ।
दर्शयन्वर्त्मवीराणां सुरासुरनमस्कृतः नीतित्रय स्यकर्तायो युगादोप्रथमोजिनः । सर्वज्ञः सर्वदर्शीच सर्वदेवनमस्कृतः छत्रत्रयीभिरापुज्य मुक्तिमार्गमसौ