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भाई जैनियोंकी इस भक्तीकी निंया करतहैं और आभूषणों से सिंगारी हुई परिग्रह धारी मूर्तीका दर्शन करना अति उत्यम समझने लगेहै । इस कार्य में हमारे हिंदू भाईयोंको पक्षपातने यहांतक घराह कि अकस्मात भी नग्न मूर्तीके दर्शन होजाना पाप समझने लगेहैं और इसही हेतु उन्होंने बहुधा नग्नमी को बाजार में निकालने पर जीनयों से झगडा किया है। और इस पक्षपात के एसे २ श्लोक भी घलिये है कि यदि कोई पुरुष मस्त हाथी की झपेट में आनाव और बचने के सिवाय जैन मंदिर और कोई स्थान न हो तो ऐसी अवस्था में भी जैन मंदिर में नहीं जाना इस स्थानपर हम अपने हिन्दू भाईयों में प्रार्थना करते हैं कि वह कृपाकर अपने प्रन्यों को देखें जिनमें उनको उन देवताओं की प्रशंमा और उन की भक्ती करने का उपदेश मिलगा जिन्को जैनीलांग पूजते हैं और जिनकी मूर्ती बनाने हैं और उनही ग्रंथों में उन को नग्न की सेवा उपासनाकरने का भी उपदेश मिलेगा। इस छोटी सी पुस्तक में हम कुछ श्लोक अपने हिन्दू भाइयों के ग्रन्थों के लिखते हैं जिम मे हमारा ऊपरोक्त कथन सिद्धहो और हमारे हिन्दभाईयों का पक्षपान दूरहोकर आपुस में प्रीतिवद और अज्ञानमिटे॥ हमारे हिन्द्र भाई रात्री को भोजन न करना छान कर पानी पीना जीवहिंसा न करना प्रादिक कार्यों को भी आश्चर्य दृष्टि में दखत हैं और इन को जनमन सेही सम्बन्धित कर हंसी भी उडात है। इस पुस्तक में हम यह भी दिखलायंगे कि हिन्दशास्त्रों में भी रात्री को भोजन न करने छान कर पानी पीने आदिक की आज्ञा लिग्नी है और इन को आवश्य कीय कार्य वर्णन किया है। ___ आशा है कि अज्ञान अंधकार को दरकरन और पक्षपान को मेटने में या छोटी सी पुस्तक बहुन उपकारी होगी और हमारे भाईयोंको प्रचलित भष्ट मारगगे हटाकर शाम्रानमार धर्म मारग में लगायेगी ।
शंकरलाल श्रावग कहाणा जिला मुजफ्फर नगर.