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। रतन परीक्षक। ॥ दरेआओकिनारे परवत जान। विजली पड़ी ताहु परमान ॥ ॥ पर्वत डिगा ताहि कर सोई। लाल लालडी प्रापत होई॥ ॥ तीन हजार वर्ष परिमांन ।गुजरे खांन वंद अब जान ॥ ॥ अवर देस ब्रह्मा के जानो। पैदा लाल नर्म सो मानो॥ ॥ साम देस वा दक्षिण होई । देस हिमालय उतपत सोई॥ ॥ उत्तम सहर वदकसा जांन । वदकसीनी लाल नाम पहचान ॥ चार वर्ण जाके शुभ जानो। आद गुलाबी रंग पछांनो ॥ ॥ दृमर गुल गुरंग पांनो ।सुर्ख स्याह जरदी पर मानो । ॥तीसर नीम गुलावी कहिये । जरदी लिए चमक कलहिए । । मध्य चमकारा इसमें नांही । नाम गुंम कर कहिए तांहीं। । चौथा नाम विनोसी होई । स्याही लिए गुलावी सोई॥ ॥क्षत्री आद चार जह जानो। उत्तम सिफत जाय मन भानौ । विप्र वर्ण ऐसा शुभ होई ।अग्नि अंगार खैर वत सोई॥
॥ दोहरा। ॥ शव चराग नामा कहा। विप्र वर्ण का होय ॥ । कोहनर ना पैद हैं। तैसें समझों सोय ।। । खोटे चार प्रकार के । देख समझिए सांच ।। ॥ टोपस अरु सिंधुरि ओ। तुर सावा अरु कांच ॥
॥चौपाई॥ । तोफा लाल रोष विन जानों । क्षत्री अथवा विष पिछानों॥ ॥ सौ धारन कर अति सुख होई । दु स्वा दूर चाहे सब कोई॥ ॥ धारन करसुख अविक दिखावे । संवंरी मनवांछित पावे ॥ ॥ रण में विजय होत सुख सोई। सभका प्रिय चाहे सभ कोई ॥ समांन वैश्य वर्ण का जानी। त्यागे शूद्र ताहि सुख मांनो ॥ एव चार आगे सन सोई। अभ्रक खास छिटक जो होई ॥ गडा नाम इक एवं पछांनो। भीतर से जह पोला मानो