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जैनधर्मपर व्याख्यान. (९) बंधे हुए कर्मोसे छुटकारा पानेके यतिधर्म श्रावकधर्मसे कठिन है, इस धर्ममें
उपायोंकी योजनाका चिन्तवन करना नेम धर्मादि बहुत ज्यादा कहे गये यह निर्जराभावना है.
- हैं, जैनियोंमें मुख्य दो पंथ हैं-१ दि
गम्बरीय व २ श्वेताम्बरीय, फिर दिगम्बरीयोंमें (१०) यह संसार कौन २ द्रव्योंसे बना है।
बीस पंथी अर्थात् मूर्तिके चरणों में केशर लगाव इसके तत्त्व कौन २ हैं ? इत्यादि
५ नेवाले व तेरहपंथी अर्थात् मूर्तिको केशर बिबातोंका विचार करना, यह लोकलकल न लगानेवाले ऐसे दो भेद हैं. श्वेताम्बभावना है. .
रीयों में भी इंढिये, और संवंगी ( पीताम्बरी) (११) रत्नत्रय अर्थात् मम्यग्दर्शन, सम्यग्- ! अर्थात् पीत वन्त्र परिधान करनेवाले ऐसे दो
ज्ञान व सम्यक्चारित्र. इन तीन भेद हैं, इनमें से श्वताम्बरीयोंमें पुरुष व स्त्रिय रत्नोंके अतिरिक्त इतर पदार्थ संसा- दोनों यतिधर्म ग्रहण करते हैं. दिगम्बरीयोंमें रमें सुलभतासे प्राप्त हो सक्ते हैं. स्त्रियां यति नहीं होती ( १ ) प्रत्येक यतिको ऐसा समझना, यह वोधिदुर्लभ-निम्नांकित दशलाक्षणिक धर्म पालना चाहिये. भावना है.
खंती मद्दव मुत्ती तव संजमोय बोधब्धे ।
सञ्चं सोयमकिंचण च वन्भंच जइधम्मो ॥ (१२) रत्नत्रय हो संसारमें यथार्थसुख
(१) खंती-क्षान्तिं व क्षमाधर्म-किसीके दायक हैं ऐसा मानना. यह धर्म:
द्वारा अपमान पाकर क्रोध न करना. भावना है.
(२) मद्दव-मार्दव-नम्रता धारण करना. अपने धर्ममें जिस प्रकार सोलह संस्कारोंका __गर्व नहीं करना. वर्णन है. उसी प्रकार जैनि
(३) अज्जव आर्जव-वर्तावमें सरलता संस्कार अथवा योंमें ५३ क्रिया है, उनमें रखना दांभिकताका परिहार करना.
बालकके केशवाय अर्थात् शिखा रखना, पांचवें वर्षमें उपाध्यायके पास
( ४ ) मुत्ति-मुक्ति-सर्व संगसे अपनी विद्यारंभ कराना, आठवें वर्ष उसे गलेमें यज्ञो
मुक्तता करलेना विरक्त होना. पवीत (जनेऊ) पहिराना व ब्रह्मचर्यपूर्वक
(५) तव-सप-बारह प्रकारके तप कहें विद्याभ्यास करते रहनेका उपदेश देना-इत्यादि
हैं उनकी पालना करना. विषय जैसे अपने धर्मशास्त्रों में है. वैसे ही जैन- (१) दिगम्बरियोंमे भी स्त्रियोंको साध्वी (अ. शास्त्रोंमें भी हैं, परन्तु हम लोगोंमें जैसे सम्पूर्ण जिंका ) होनेकी आज्ञा है. संस्कार नहीं किये जाते मुख्य २ माने जाते हैं. (२) हमने जिन २ स्थलोंपर दश धोका वर्णन
देखा है वहां मुक्तिकी जगहँ त्यागधर्म देखा है, परंतु वैसे ही जैनियोंकी भी दशा है। सैकड़ी जैनी उक्त गाथासे इस विषयमें मतभेद जाना जाता है, तो यज्ञोपवीतका संस्कारतक नहीं करते. कदाचित् श्वेताम्बरसम्प्रदायमें ऐसा माना गया हो.
किया.