Book Title: Lecture On Jainism
Author(s): Lala Banarasidas
Publisher: Anuvrat Samiti

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Page 277
________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. केवल इतनाही है कि, दिगम्बरीय जैनी मूर्तिका नेकी आज्ञा है। इस बातसे ही उसका प्राचीन जल धारासे स्नान नहीं कराते किन्तु गीले क- त्व व्यक्त होता है, दिगम्बरमूर्तिके अंगपर भपड़ेसे उसका प्रक्षालन करते हैं; व अक्षत, पण वगैरह नहीं होते, वे मूर्तिके नेत्रोंमें माफूल, धूप, दीप बगैरेहके बदले नारियल च- णिक अथवा कांचके टुकड़े नहीं जड़वाते. एक दाते हैं, कुछ समर्पण करना हुआ तो वह मूर्तिके | इन्द्रके सिवाय अन्य किसी भी हिन्दू देवताकी शरीरपर नहीं छोड़ते किन्तु सन्मुख कुछ अ- मूर्ति मन्दिरमें नहीं रखते; सोलह स्वर्ग मानते न्तरपर छोड़ते हैं; श्वेताम्बरीयोंमें पूजाकी | है। इनके गुरु अपने भक्तोंके हायसे दिया सम्पर्ण विधि अपने ही सरीखी है, वे मूर्तिक थाली में नहीं जीमते. | हुआ अपने हाथमें रखवाकर भोजन करते हैं अंगमें पुष्पादि पहिनाते हैं, केशर लगाना यह पूजनका मुख्य अंग है, शुद्धोदकसे स्नान, पंचा दूसरा पंथ श्वेताम्बर—यह दिगम्बरीपंथके पश्चात् निर्माण किया हुआ मृतस्नानादि अवशेष अंग अपने ही सरीखे हैं. । श्वेताम्बरजैन. जान पड़ता है. इस पंथकी अभीतक जैनधर्मके तत्त्व, उसका तत्त्वज्ञान व उत्पत्तिके विषयमें दिगम्बर ____ आचारके सम्बन्धमें संक्षिप्त प-व श्वेताम्बर दोनों जुदी २ कथा कहते हैं. उसमेंसे अंनियों के मुख्य रिचय दिया, अब उनमें जो पंथ अनेक पंथ हैं, उनके प्रत्येक | दिगम्बरपंथकी कथा इसप्रकार है कि,विषयका थोड़ा २ परिचय देकर पश्चात बौ. "उज्जयनीमें चन्द्रगुप्त नामका राजा राज्य करता द्धधर्म व जैनधर्ममें साम्य व भेद कहां २ है था. वहां भद्रबाहुस्वामी नामक जैनमुनि फिरते २ यह कहूंगा. भिक्षार्थ आये, उनको एक गृहकेपास पहुंचनेपर जैनधर्मके दो बडे पंथ दिगम्बर व श्वेताम्बर एक बालकने कहा कि, 'तुम यांपर मत रहो, हैं. इनमेंसे दिगम्बर पंथ प्राचीन शीघ्र चले जाव; कारण अब यहांपर भीषण दिगम्बर जैन. सा ऊँचता है. शंकराचार्यके स- दुष्काल पड़नेवाला है. वह १२ वर्षतक रहेगा. मकालीन आनन्दगिरिने अपने फिर तुम्हें कोई भिक्षा नहीं देगा.' भद्रवाहुने शंकर विजय ग्रन्थमें इस विषयका उल्लेख अष्टांग निमित्तज्ञानसे सत्य जान करके '२४०० किया है, तदतिरिक्त उनके मतसे ही उसकी शिष्यों से आधे मुनियोंको वहां रक्खे और अवशेष प्राचीनता दिखाई देती है, दिगम्बरॉकी मूर्ति | आधे मुनियोंको लेकर वह दक्षिणकी ओर चले नग्न रहती हैं व उनके गुरुओंको भी नग्न रह- (१) भद्रवाहूके २४,०० मुनि शिष्य नहीं थे (१) दीपधूपादि अष्ट द्रव्योंसे सबही दिगम्बरी पूजन किंतु २४,००० हजार थे. उनको अपने ज्योतिष करते हैं, जलधारासे स्नान भी कराते हैं. हां ! वर्तमानमें | विचारसे १२ वर्षके अकाल पड़नेका कहकर दक्षिणको कोई २ शुद्ध मागी केवल प्रक्षाल करते हैं, परंतु शा- तरफ विहार कर जानेको आदेश दिया परन्तु सब मुनि स्त्रोंकी यह अनुमति नहीं है, कदाचित् आपने ऐसा ही उनके साथ नहिं गये. आधे अर्थात् १२,००० हजार देखा होगा. वहीं रह गये. सो ऐसे दुष्कालमें मुनिधर्म पालने में अतुवादक. | असमर्थ होकर उन्होंने सरल स्वेताम्बरमत चलाया.

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