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। रतन परीक्षक ! मलोन चिन्ह काकपद जैसे । सर्वसनास कर मानो नेसे ॥ जो दल होल दृटे आ होई। जो विन तेज पल आ सोई॥ फूट टूट शुगागू दिखावे। मध्य मलीन दरिद्रता पावै ।। रुधिर बिंदुवतछिटक जो होई। शोधू विनाश करे फल सोई ॥ जो निरदोष समझ कर ल्यावै। जेवरात में दोष दिग्वा ।। ताको कबहुं मारन करै । महा निंद त्यागे सुत्र ।। नीन कोण कटाहा कर होई। चार कोण भयदायक सोई॥ पांच कोण मृत्यु कर कहिये । छेइकोण आदि मुम्ब लाहिये ।। चमक हीन सो आपदपावै । जो मन्दीन सो शोक दिखाने । ऊचा अरु नीना जो होई। अति दुग्न दायक मानो सोई।। रंगहीन वा श्याम दिखाने । सो भयदायक वेद जनाये। नीर काक पद छिटा ज्ञानो। तीनों दोष मृत्यु भय मानो । अष्टांक नाम कोरे को गावे । चौरस कुतवी घाट सुहात्र ।। एक कोण टूटा जव होई। सर्वश्व नास कर कहिए सोई॥ पांच तत्व मिल उत्तपन मांनो । पृथवी अंश अधिकता जांनो , वली देहतें उतपन होई। दीनतें अथवाह कर सोई॥ जा प्रकार हीग जग होई। उत्तम लक्षण धारो सोई।। उत्तम ही। तोला तोल । करोड़ रुपैया ताको मोल ॥
अथ माणिक विधान्म द ब्रह्मा देश अपार है। आभा नगरी जान॥ पैग जंगल बीच ही। माणिक खान पछन।
॥चौपाई॥ सैलान देश दूसर जो होई। उत्तम माणिक उतपत सोई।। शांम देश मशकत जो जानों। कावल अवर हिमालय मानो। जा वित्र अवर देस मनारो। उतपत माणिक तहां विचारो॥ उन एक रनो ने होई। नी नाम कहल जग गई।
Marwa
सैलान देश दुसर जो जानो । कावलत माणिक तहां