Book Title: Lecture On Jainism
Author(s): Lala Banarasidas
Publisher: Anuvrat Samiti

Previous | Next

Page 166
________________ परिशिष्टः " After having received their dismissal and leave to proceed to their own country, they made the following request:-That if the King, protector of the poor, would issue orders that during the twelve days of the month Bhodon, called Putchoossur (which are held by the Jains to be particularly holy), no catile should be slaughtered in the cities where their tribe reside, they would thereby be exalted in the eyes of the world, the lives of a number of living animals would be spared, and the actious of his Majesty would be acceptable to God; and as the persons who made this request came from a distance, and their wishes were not at variance with the urdiances of our religion but on the contrary were similar in effect with those good works prescribed by the venerable and holy Slusslman, we consented and gave orders that, during those twelve days called Putohoossur, no animal should be slaughtered. "The present Sunnud is to endure for over, and all are enjoined tu oley it, ill use their endeavouts that 10 one is molested in the performance of liis religious cerentonies. Pated 7th Jumad-ul Sani, .99 llejiralı." अर्थ-जैनियांने मुझसे प्रार्थना की कि पधूसर ( पज़षण ) अथान् उन १२ दिनां में जिनको व पवित्र मानतीजावाकी हिसाको रोका जाय और अकवरवादशाहका दिया हआ असली फरमान जिसको उजनमेंहनेवाले उनके बडे पुजारीने यत्नसे रक्खा था उन्होंने मेरे देखने कालिये भेजा। इल अपूर्व पत्रका निम्नलिखित तर्जुमा है. " इश्वरके नामसे ईश्वर बडा है. “महाराजाधिराज जलालुद्दीन अकयर शाह बादशाह गाजीका फरमान." "मालवाके मत्सदियोंको विदित हो कि चुकि हमारी कुल इच्छाये इसी बातकेलिये है के शभाचरण किये जाय और हमार श्रेष्ठ मनोरथ एक ही अभिप्राय अर्थात अपनी प्रजाके मनको प्रसन्न करने और आकर्षण करनेकेलिये नित्य रहते है।" __" इस कारण जब कभी हम किसी मत वा धमके ऐसे मनुष्योंका जिकर सुनते है जो अपना जीवन पवित्रतासे व्यतीत करते हैं, अपने समयको आन्मध्यानमें लगाते हैं, और जो केवल ईश्वर के चिन्तवनमें लगे रहते है तो हम उनकी पूजाको बान्य रीतिको नहीं देखते है और केवल उनके चित्तके अभिप्रायको विचारके उनको संगांत करनेकेलिये हमारे तीब्र अनुराग होता है और ऐसे कार्य करनेकी इच्छा होती है जागिरका पसंद हो । इस कारण हरिभज सूर्य और उसके शिष्य जो गुजरातमें रहते है और वहांसे हालही में यहां आये हैं उनके उग्रतप और असाधारण पवित्रताका वर्णन सुनकर हमने उनको हाजिर हानेका हुक्म दिया है और वे आदर के स्थानको चूमनेकी आज्ञा पानेसे सन्मानित हुये हैं. ." अपने देशको जानकेलिये विदा ( रुखसत) होनेके पीछे उन्होंने निम्न लिखित प्रार्थना की:

Loading...

Page Navigation
1 ... 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391