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अंगरेजों ने हमारा व्यापार कैसे बग्बाद किया।
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कम्पनी-सरकार की अमलदारी के आरंभ में, अंगरेजों ने, इस देश के जुलाहों और व्यापारियों पर जो जुल्म किया था उसका वर्णन अंगरजी ग्रंथों ही में पाया जाता है। उस समय, वे लोग, हमारे जुलाहों को स्वतंत्रतापूर्वक न तो कपड़ा बुनने देते थे, और न बुना हुआ कपड़ा बेचनही देने थे । यही हाल और रोजगारियों का भी था। नवाब मीर कासिम ने. सन १७६२ ई. में, गवर्नर साहब को जा पत्र भेजा था उसमें अंगरेज-व्यापारियों के संबंध में लिखा है कि " Theforeibly take a way the goo.is and commities of the Brit:. more haritatis for it fourth part of their value; and by 1 of violence plein they oluline the Reits de: 19 give five per lorowla will tr Wort but one rupe.“ इमका भावार्थ यह है वे लोग रैयत और व्यापारियों का माल जबरदी से ले जाते हैं और सिर्फ चौथाई कीमत देते हैं । जिस चीज की कीमत सिर्फ एक रुपया है उसके लिए वे लोग, जबरदस्ती और जुल्म करके, पांच रुपय ले लेते हैं।
___ C...xi.ke.vations an Indian .kiri" नाम के ग्रंथ में, विलियम बोल्दस साहब लिखते हैं कि यह बात बहुत सच है कि जिस तरह कम्पनी, इस देश में, व्यापार कर रही है वह जुल्म और उपद्रव का एक लगातार दृश्य है, जिसके हानिकारक परिणाम प्रत्येक जुलाहे और कारीगर पर देख पड़ रहे हैं। अगरेज लोग, इस देश में पैदा होनेवाली प्रत्येक वस्तु का, ठीका ( Manml. ) ले लेते हैं और अपनी ही खुशी से उसका भाव मुकर्रर करते हैं । जब उनका गुमाश्ता किसी गांव में आता है, तब वह अपने चपरासी को भेजकर उस गांव के दलालों और जुलाहों को अपनी कचहरी में बुलवाता है और उनको कुछ रुपय पेशगी देकर एक तमस्सुक पर यह लिखवा लेता है कि इतना माल, इतने दिनों में, इस भाव से दिया जायगा । यह काम जुलाहों की रजामन्दी से किया नहीं जाता । कम्पनी के गुमाश्ता लोग, अपनी इच्छा के अनुसार, जुलाहों से मनमानी शर्ते लिखवा लेते हैं। यदि कोई पेशगी लेने से इन्कार करे तो रुपये उसकी कमर में बांध दिये जाते हैं और उसका कोड़े मारकर कचहरी से निकाल