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अंगरेजों ने हमारा व्यापार कैसे बरबाद किया ।
वह सब इंग्लैन्ड के कारखानों में जाने लगा। इधर भारतवर्ष के कारीगर रसातल को चले गये - भारतवर्ष का व्यापार मिट्टी में मिल गया - और उधर इंग्लैन्ड के कारखानों के मालिक मालामाल हो गये अंगरेजों का व्यापार खूब बढ़ने लगा ।
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इंग्लैड में, कम्पनी के कारबार की, कई बार तहक़ौकात हुई। पहली तहकीकात सन १७६३ ई० में हुई; परंतु हिंदुस्थान की आर्थिक दशा को सुधारने का कुछ भी यत्र नहीं किया गया। दूसरी तहकीकात सन् १८१३ ई० में हुई । उस समय एक कमीशन नियत किया गया था और हेस्टिंग्स, मनरो, मालकम आदि बड़े बड़े अफसरों की सलाह ली गई थी । सलाह इस बात की न थी, कि भारतवर्ष की आर्थिक दशा की उन्नति किस प्रकार की जाय; परंतु सलाह सिर्फ इस बात की थे, कि भारतवर्ष के व्यापार को नष्ट करके इंग्लैड के कारखानों की तरक्की किस उपाय से की जाय । धन्य है भारत की महिमा ! अंगरेजों के हजार यन करने पर भी, उस समय, भारतवर्ष के सूती और रेशमी कपड़ों पर इंग्लैन्ड में ५०-६० रुपये सैकड़ा नफा मिलता था । अर्थात् जब इंग्लैण्ड के बने हुए सूती और रेशमी कपड़े, इंग्लैन्ड में १०० रुपये को मिलते थे, तब हिन्दुस्थान के बने हुए वही कपड़े इंग्लैन्ड में ५० या ६० रुपये को मिलते थे । इसी लिये हमारे देश का बना हुआ कपड़ा, उस समय, विलायत को बहुतायत से भेजा जाता था । विलायत के जुलाहों के बनाये हुए कपड़ों को वहां कोई भी पसन्द न करता था । हमारी यह कारीगरी, हमारी यह कुशलता, हमारी यह व्यापार-शक्ति अगरेजों को अच्छी न लगी । अतएव अपने देश के व्यापार की रक्षा और उन्नति के हेतु उन लोगों ने 'स्वदेशी वस्तु व्यवहार की व्यवस्था की और हिन्दुस्थान के कपड़ों को 'बहिष्कृत कर दिया । इंग्लैन्ड की पार्लिमेन्टसभा में क़ानून बनाया गया, कि जो व्यापारी हिन्दुस्थानी कपड़ा बेचेगा उसको २००) रु० और जो मनुष्य हिन्दुस्थानी कपड़ा पहनेगा उसको ५० ) रुपये दण्ड किया जायगा । सन् १८१५ ई० में दूसरा क़ानून जारी किया गया कि इंग्लैड में कालिकत से आनेवाले १०० पौंड * के कपड़े पर
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= १५ रुपये; १ शिलिंग=१२ आंन; १ पेन्स= १ आना.