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जैनधर्मपर व्याख्यान.
उसमें चौवीस तीर्थकरोंकी मूर्ति पाई गई है ! वे । इस लिये देवने उसके मस्तकमें चिन्ह बनाया अत्यन्त मन्य हैं. वहांसे पास ही चन्द्रागिरी नामक था. इस कारणसे जैनियोंके व तुमारे हमारे टेकडीपर दो पादुका विशाल आकृतिकी हैं. जैनि- सलहीके मस्तकोंमें तिलक होता है. अतएव योंके तेवीसवें तीर्थकर पाश्वनाथ नब उडकर देव- | उक्त मिशनरी साहिबने तुम हम सबोंको इ. कोक गये तब उनके यह पादचिन्ह उछल आये निप्तमें भटकते फिरते केनकी संतति ठहराये तो थे ऐसा कई लोग कहते हैं*" इसी परसे साहिब उक्त साहिनका क्या कर सक्ते हो : तीसरे एक बहादुरने केनके वंशज ठहरा डाले हैं। साहिब मॉरिस नामक प्राचीन विद्याविशारदने इस अबहादुरने अपने विधानकी पुष्टिमें और एक प्रमाण नुमानका पुष्टीकरण कुछ निराली ही रीतिसे दिया है जिसके योगसे केवल जैन ही क्या परंतु को- किया है: ' गौतमबुद्ध, व 'इजिप्तका प्रसिद्ध शिक, अत्रि, कश्यप वगैरह ऋषियोंके वंशज विद्वान् साधु पुरुष हर्मिम यह एक ही थे. कारण, हम लोगोंको भी सिर्फ एक घटिकामें अपने इ-हर्मिसने जिस प्रकार लेखनकलाका प्र. निशियन पूर्वजोंका श्राद्ध करना पड़े। बाइ- । चारकर विविधविषयोंपर अन्य निर्माण बिलमें कहा है कि, "केनको कोई मार न सके किये और इतना सम्पादन किया हुआ ज्ञान
व्याख्यानदाताकी टिप्पणी. चिरकाला स्थिर रहने व लोगोंको उपयोगी पड़ने*पार्श्वनाथकी मुक्ति दक्षिणमें हुई यह बात बहुतसे के लिये बहुतसा परिचय शिलास्तंभोंपर जैनी स्वीकार नहीं करते. मेरे परिचयी एक जैन यतिने ।
न खोद दिया. इसी प्रकार बौद्ध व जैन लोगोंने कहा कि, बंगालक हजारीबाग जिलेमें सम्मेद शिखर पर्वतसे २० तीर्थंकर देवलोकवासी हुए उनमें पार्श्व- वियाका पुरस्कर्तृत्व अपने ऊपर लेकर अनेक नाथ भी हैं. बाकीके चार तार्थंकर ऋषभदेव, महावीर, शास्त्र ग्रन्थ लिखे और खोदकर शिलास्तंभ वासुपूज्य, व नेमिनाथ इनका मोक्ष अनुक्रमसे भष्टापद स्थित किये हैं. अर्थात् यह शिलास्तंभोंकी (कैलाश ) पावापुर ( विहार ) चंपापुरी ( भागलपुर ) कल्पना जैनी लोक इजिप्तसे लाये, ऐसा माननेंमें और गिरनार (काठियावाड़) पर हुआ. अनुवादककी टिप्पणी.
और हर्मिस व जैनोंकी एकता कर डालने १ वहांपर पादुका नहीं हैं किन्तु ४१ हाथ ऊंचाईको मॉरिस साहिबकी कल्पनाको कुछ भी प्रयत्न नहीं सुंदर अखंड मूर्ति हैं.
पड़ा। २ देवलोकवासी हुये, ऐसा कहना मूल है. जिस प्रकार जैनियोंकी उत्पत्तिके सम्बन्ध क्योंकि मुक्तात्मा मोक्षस्थान वा सिद्ध शिलानामक एक स्थान तीन लोकके उपरि है वहां जाकर सदाके
भिन्न २ लांगोंने पृथक
जैनधर्मके उत्पत्तिकाल लिये निवास करते हैं. फिर कभी उन मुक्तात्मावोंका के सम्बन्धमें भिन्नमत.
पृथक् तर्कनायेंकी हैं (सिद्धोंका ) जन्म मरण नहिं होता; देवलोक जि.
- उसी प्रकार उनके सको जैनी लोक सोलह स्वर्ग नव प्रविक विमान भादि धर्मकी उत्पत्ति कालके विषयमें भी भिन्न २ मत कहते हैं वह भिन्न स्थान है. देवलोकमें गया हुवा जीव हैं, कोई कहता है कि, जैनधर्म बिलकुल नवीन फिर भी मनुष्यतिर्यचादिकोंमें जन्म मरण करता व संसारमें फिरता है इस कारण ‘देवलोकवासी हुये' अर्थात् अनुमान बारहवीं अथवा तेरहवीं शताकी जगह मुक्तिको गये ऐसा कहना ठीक है. ब्दीका है; कोई कहता है वह बारह सौ वर्षका