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जैनधर्मपर व्याख्यान
दोनोंके मध्य एक बसाभारी संग्राम उपस्थित | सने आश्रय दिया, वह आसासा नामका पुरुष हुआ और उसमें सिंहोदर विजित किया गया. | मैन ही था, ऐसा कहते हैं. मंडपाचल अथवा ऐसी कथा सुनते हैं. ललितपुरके सनिकट वर्तमानका मांडू-यहां मुसलमान बादशाहके चन्देरी नामक ग्राम वर्तमान है. यहांपर शिशु- समयमें मुख्य दिवानगीरीके पद पर एक नैनी पाल नामका रामा राज्य करता था, वह जैन ही नियुक्त था. सारांश, प्राचीन कालमें जैनिथा. उज्जयनीके राजा गन्धर्वसेन व श्रीवर्मा योने उत्कट पराक्रम व राज्यकार्यभारका परि. नैन थे. ऐसा कईएक ग्रन्थकारोंने लिखा है चालन किया है. अर्वाचीन समयमें इनकी रापरन्तु इस विषयमें मै स्वतः सशंकित हूं. बल्ल- जकीय अवनतिमात्र दृष्टि गोचर होती है" भवंशी राजा कुमारपाल जैनधर्मका बड़ामारी अर्वाचीन इतिहासमें राज्यवैभव सम्बन्धी स्पपुरस्कर्ता हो गया है. प्रसिद्ध बौद्ध राजा अ- ( जैनी लोग बिलकुल नहीं पड़े हैं इसका शोकके प्रपौत्र महाराजा संपदिते नैनधर्म स्वीकारण "हिंसानिषेधका तत्त्व इन्होंने मर्यादाके कार किया था. व स्वतः अशोक ही बौद्धधर्म बाहिर कर दिया. इससे राजकीय स्पर्धामें इनका स्वीकार करनेके पूर्व जैनधर्मानुयायी था, ऐसा गुजारा नहीं था" यह हो सकता है. इस अ. कई पंडितोंका मत है. कर्नेल टॉड साहिबके हिंसा तत्त्वके अमर्याद होनेसे जैनियोंका राज्य राजस्थानीय इतिहासमें उदयपुरके घरानेके वि- किस प्रकार नष्ट हुआ, इसका एक उदाहरण षयमें ऐसा लिखा गया है कि, "कोई भी | कर्नेल टॉड साहिबने दिया है कि, अनहलवाड़के नैन यति उक्त संस्थानमें नब शुभागमन करता | अन्तिम जैनराजा कुमारपाल पर शत्रुकी चढ़ाई है तो रानीसाहिब उसे आदरपूर्वक लाकर योग्य होनेपर वह अपनी सैन्य तयार न करके स्वस्थ सत्कारका प्रबन्ध करती हैं, यह विनय प्रबन्ध- रहा. इसका कारण क्या ? वर्षाऋतुके दिन होकी प्रथा वहां अबतक नारी है. इसका कारण नेसे यदि सैन्यमें हलचल कीजाती तो उसके पांवोंके ऐसा कहा जाता है कि, उदयपुरके इतिहास- नीचे लक्षावधि जंतुओंका विनाश होता यह प्रसिद्ध राणा प्रतापसिंह, अकबरबादशाहसे भीति' थी. जैनीलोग जिस प्रकार प्राचीन कालमें लड़ते २ बहुतही केशित हो रहे थे, उस समय
राजकीय उन्नति भोगकर भामासा नामक एक जैन महाशयने वीस हजार जैनवाङ्मय. पुनःअवनत दशाको प्राप्त हुये फौजकी संतोषप्रद सहायता अत्यन्त आ
उसी प्रकार इनका वाङ्मय वश्यकतामें आकर दी. उसी समयसे कृतज्ञ (१) यह एतिहासिक घटना जो टॉड साहबने उदयपुरका राज्य जैनियोंका ऋणी हो रहा है। लिखी है तो गलत है. क्योंकि राजावोंको प्रजाकी रक्षार्थ दूसरी कथा पन्नादाईकी है यह तो हम सबको । अत्यावश्यकता पड़नेपर लड़ाई करनेका निषेध
(जनशास्त्रोंमें कहीं नहीं है. उसके राज्य जानेका कारण विदित ही है. वनवीरके भयसे अपने स्वामीपुत्र
अपनस्तानापुत्रः अन्य ही कोई होना चाहिये. यदि-टॉड साहबका की रक्षा करनेकेलिये अपना जीव जोखममें कहना ठीक हैं. और उसने जीवहिंसाके कारण ही युद्ध डालनेवाली पन्नादाईको उस राजपुत्रसहित जि- नहिं किया हो तो वास्तवमें राजनीतिसे विरुद्ध किया है.