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विषयप्रवेश।
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प्रधानतः पूना के सुप्रसिद्ध "केसरी" पत्र के आधार पर, इस विषय की विस्तृत चर्चा करने की आवश्यकता समझी गई। इसका उल्लेख भूमिका में किया गया है। आशा है कि पाठकगण इस लेख को बहुत ध्यान देकर पढ़ेंगे। इस लेख के शीर्षक में 'बायकाट ' एक और शब्द है जिसके अर्थ के स्पष्टीकरण की आवश्यकता है । इस समय हम उसके विषय में यहां कुछ भी लिखना ठीक नहीं समझते। उसका अर्थ आगे चलकर पाठकों को आपही
आप विदित हो जायगा । अब हम प्रस्तुत विषय की उत्पत्ति और उसके ऐतिहासिक महत्व के संबंध में कुछ विवेचन करते हैं।
प्रस्तुत विषय की उत्पत्ति और उसका ऐतिहासिक महत्व।
जिस समय, कुछ दिन पहले, हिन्दुस्थान-सरकार ने बंगाल-प्रांत
के दो टुकड़े करने का प्रस्ताव प्रकट किया था, उस समय, इस देश के सब लोगों ने अपनी असम्मति प्रकट की थी । लोगों ने कहा कि जो लोग धर्म, भाषा, व्यवहार, रीति-रवाज और शिक्षा में एक हैं उन्हें विभक्त करके शक्तिरहित करना किसी प्रकार उचित और न्याय-संगत नहीं हो सकता । इसी विषय का प्रतिवाद, बम्बई की कांग्रेस में भी, सन् १६०४ ई. के दिसंबर महीने में, किया गया था; और गवर्नमेन्ट के पास एक रिजोल्यूशन (मंतव्य) भेजा गया था कि, यदि एक लेफ्टिनेन्ट गवर्नर से बंगाल-प्रांत का प्रबंध नहीं हो सकता तो वहां एक गवर्नर नियत किया जाय । बंगाल-प्रांत के लोगों ने तो, वंग-भंग से अपनी असंतुष्टता प्रकट करने के लिये, एक या दो नहीं किंतु, सैकड़ों सभाएं की। उन्होंने गवर्नमेन्ट को अनेक बार प्रार्थनापत्र भेजकर अपनी असम्मति दिखलाई और नम्रतापूर्वक यह प्रार्थना की, कि बंगालियों की एकता को कायम रखने के लिये वंग-भंग की प्राक्षा रद की जाय । इंगलैण्ड में “ इन्डिया कौन्सिल" नाम की एक सभा है। उसीके द्वारा इस देश का शासन-कार्य किया जाता है। उस सभा के मंत्री को " सेक्रेटरी आफ् स्टेट कार इन्डिया" कहते हैं । इन मंत्री महाशय के पास