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कांग्रेस और 'स्वदेशी।
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एकही प्रश्न और एकही कर्तव्य के भिन्न भिन्न रूप हैं।" उक्त वाक्यों में एक भी ऐसा शब्द नहीं है जिससे यह बात प्रकट हो, कि इस देश के निवासियों की प्रार्थना पर ध्यान देना, उनको स्वराज्य के कुछ हक देना और उनको संतुष्ट रखना भी अंगरजा का कर्तव्य है। इस देश में अंगरेजों के सिक दो ही कर्तव्य हैं-शासन करना ( अर्थात् , हिन्दुस्थानियों को सदा दासत्व में रखना) और सम्पत्ति को चूसना सारांश, वर्तमान शासन-प्रणाली इस प्रकार की है कि, बाहर से देखनेवाले के अंगरंजी व्यापार और अंगरेजी राजसत्ता भिन्न भिन्न देख पड़ती है; परन्तु यथार्थ में वे दोनों एकत्र और सम्मिलित हैं। अतएव अंगरेज-व्यापारियों की उक्त सत्ता का प्रतिबंध करके, अपने देश की औद्योगिक तथा आर्थिक उन्नति करने के लिये, हमारे नायकों ने 'स्वदेशी आन्दोलन और 'बायकाट' का उपाय द्वंद निकाला। जिस प्रकार कांग्रेस-द्वारा राजनैतिक आन्दोलन करने से यह आशा की जाती है, कि अंगरेज-अधिकारियों की अनियंत्रित राजसत्ता कुछ घट जायगी; उसी प्रकार 'स्वदेशी' आन्दोलन और 'बायकाट' के द्वारा उद्योग करने से यह आशा की जाती है, कि अंगरेज़-व्यापारियों की सत्ता और इस देश की सम्पत्ति को चूसने का उनका यत्न कुछ शिथिल हा जयगा । इससे यह बात सिद्ध होती है, कि चाहे कांग्रेस-द्वारा राजनैतिक
आन्दोलन किया जाय, चाहे 'स्वदेशी' द्वारा औद्योगिक आन्दोलन किया जाय, दोनों बानों का अंतिम परिणाम एकही होगा; क्योंकि ये दोनों बातें अंगरेजों के स्वार्थहित के विरुद्ध हैं- इन दोनों से अंगरेजों की अपरिमित स्वार्थ-बुद्धि का कुछ प्रतिबंध अवश्य होगा । सारांश, कांग्रेस और । स्वदेशी'
आन्दोलन के अन्तिम परिणाम में कुछ भी भेद नहीं है । जो लोग इस बात को नहीं मानत व स्वदेशी' के यथार्थ भाव ही को समझने में असमर्थ हैं !
*(':-"My work lies in administration: yours in ploitation, Both are aspects of the sime question and of the am dus,
___Lorel Curzon'- sleech at Buirikur, January 1:08.