________________
स्वदेशी आन्दोलन और बायकाट ।
मारबाड़ी, मुसलमान, व्यापारी आदि सब लोग उपस्थित हुए अनेक युक्तियुक्त व्याख्यान दिये गये; बंग-भंग की आज्ञा का शांततापूर्वक विरोध किया गया; हिन्दुस्थान सरकार को प्रार्थना-पत्र भेजे गये; स्टेट सेक्रेटरी से निवेदन किया गया; और पार्लियामेण्ट में भी इस विषय की चर्चा कराई गई । परंतु, शोक है कि इस प्रचंड आन्दोलन से भी कुछ लाभ न हुआ ! सैकड़ों सभाओं में व्यक्त की हुई बहुजन सम्मति का तिलमात्र भी आदर न करके, सरकार ने अपनी पराधीन प्रजा की उचित और न्याय्य प्रार्थना को पैर के नीचे कुचल डाला !! तब कहीं हमारे समाज-नायकों की आंखें पूरे तौर से खुली। तब कहीं वे अपनी गहरी मोहनिद्रा से एकदम जाग उठे । तब कहीं उन लोगों को यह मालूम हुआ कि बड़ी बड़ी सभाएं करने लेक्चर देने, रिजोल्यूशन पास करने और मेमोरियल भेजन का यह समय नहीं है। तब कहीं उनकी आत्मा ने गवाही दी कि हमारी वर्तमान-आन्दोलन-पद्धति केवल भ्रममात्र हैं - वह केवल मृगजल है - वह राजकीय माया का पटल है। सच है: यदि हमारी वर्तमान बहुजन सम्मति की मर्यादा केवल मौखिक वादविवाद से आगे नहीं बढ़ती, तो उसका असर स्वच्छन्द और प्रवल राजसत्ताधिकारियों के अनुचित बर्ताव पर कैसे हो सकता है ? सम्प्रति हमारा आन्दोलन, समुद्र की उन लहरों के समान है जो समुद्र तट की चट्टानों पर जोर से टक्कर मारकर परावृत्त हो जाती हैं। ये लहरें भी, किसी अंश में, हमारे आन्दोलन से अधिक कार्यक्षम हैं; क्योंकि वे अपने क्षारगुरण में, कुछ समय में उन चट्टानों में भी बड़ी बड़ी दरारें करके अंत में उनके टुकड़े टुकड़े कर डालती हैं: परंतु हमारे आन्दोलन में यह खारापन भी नहीं है । अतएव हमारे अलोने आन्दोलन तरङ्गों का सरकार पर कुछ भी असर नहीं होता । हो कैसे ? केवल याचक वृत्ति से राज्यसंबंधी हक़ कभी प्राप्त नहीं हो सकते। ऐसी अवस्था में लोगों ने सांचा कि अब क्या किया जाय ? यदि इसका कुछ प्रतीकार न किया जायगा तो हमारे आन्दोलन में लोगों का विश्वास किसी प्रकार न रह सकेगा । इसमें सन्देह नहीं कि लोगों में, किसी विषय के संबंध में, जागृति कर देना और बहुजन सम्मति को अपने अनुकूल करलेना लोकनायकों का काम है; परंतु इससे भी बढ़कर उनका काम यह है कि सरकार
१२